Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 366
________________ [ ८१७] स्थान जाना पड़े तो पहिले चौमासाके थोड़े दिनठहरे वो स्थान और कारण सिर दूसरी जगह गये सो स्थान साधुनीके निवास स्थान दो कहे जावेंगे परन्तु चौमासाका काल मान तो दोनों जगह का मिलाकर चारमास कहे जाते हैं (जैसे वीर प्रभुके दीक्षा अवस्थाका पहिला चौमासा १५ दिन तापसके भामममें और ३॥ महीने शूल पाणी यक्षके मन्दिर में हुए सो क्षेत्र स्थान दो परन्तु काल मान दोनों स्पानोंका मिलाकर ४ महीनेका गिनते हैं सो यह बात जैनमें प्रसिद्ध है इसी तरहसे वीरप्रभुके मवमहीनों की गर्भस्थितिरूप कालमान तो दोनों माताका मिलाकर है परन्तु कारण बससे आश्चर्यका प्रतिकार करने के लिये त्रिशलाके गर्भ में जाना पड़ा इसलिये च्यवन रूप स्थान दो माने जाते हैं इसीलिये स्थान कल्याणक प्रसंगानुसार एकार्थ वाले पर्यायवाची माने जाते हैं यह बात पहिले भी लिख चुके हैं तो शास्त्रानुसार युक्ति युक्त होनेसे सब आत्मार्थियों को मान्य करना चाहिये इस बातको भी विशेष रूपसे विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं। और त्रिशला माता संबंधी देवानन्दा भिका यवन जन्म प्रगट पने दिखानेके लिये ही तो शास्त्रकारोंने ८२ दिन गये बाद त्रिशलाके गर्भने जानेके दिन आश्विन बदी १३ को और जन्मके दिन चैत्रदी १३ को इन्द्रका आशम चलायमान होनेसे इन्द्रने अवधि ज्ञानसे भगवान्को देखकर सिंहासनसे उठकर नमस्कार नमोत्धुणं किया और चैत्र सुदि १३ को त्रिशलाको तीर्थकर पुत्र होनेका कहनेको आयो ऐसा खुलासा लिखा है परन्तु देवानन्दा. संबन्धी आषाढ़ सुदी ६ को बदी १३ जैसी बातें होनेका किसी जगह नहीं लिखा है जिसपर भी सुदी ६ को मानना और वदी १३ में च्यवनके सब कर्तव्य होने पर भी नहीं मानने के लिये कुयुक्तियोंके कुविकल्पों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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