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[८१६] और ८२ दिन पर्यन्त ममवानके मीच यौत्र कर्मका उदय वा सो क्षय करना पड़ा तथा ८२ दिन मधे बाद उच्च मौत्रका उदय हुआ इस लिये देवानन्दा गर्भ से निकलना हुआ और त्रिशला के गर्भ जाना हुमा बीध अन्तर मुहुर्त असंख्याते समय व्यतीत हुए इस लिये श्रीसमवायांग सूत्र वृत्ति अलन भव गिना है जिसका पाठ इसी अन्य पृष्ठ ५२० में छप चुका है और इसी कारणसे त्रिशलाके गर्भ में आनेको च्यवन मान कर कल्याणकत्वपनमें आधारांग स्थानांगादि भागमोंमें तथा उनकी व्याख्या वगैर अनेक शास्त्रों में खुलासा पूर्वक लिखा है इस लिये देवानन्दाके च्यवन और त्रिशलाके जन्म माननेसे उपरोक्त अगमादि शास्त्र पाठोंके उत्थापनकी दूषणको प्राप्ति होवे तथा व्यवनके बिना जन्म नहीं हो सकता और च्यवन नहीं माननेसे जन्म मानने में भी बाधा पड़ती है इस लिये त्रिशलाके गर्भ में मानेको व्यवन अलग मानना ही आत्मार्थियों को परम उचित है उससे उपरोक्त आगमोक्त बातको प्रमाण करनेसे सम्यक्तको मलिमता दूर होवे और दोनों जगह च्यवन जन्म मानना आगमानुसार युक्ति पूर्वक है जब दोनों च्यवन ठहरे खो उसके कर्तव्य तो स्वयं पिद्धस बातको विबेको जन स्वयं विचार लेवेंगे।
और भगवान् देवानन्दा नभने आये तथा पर्मनसे हरण दुमा यह बात माश्चर्य रूप होनेसे प्राण मोर पर्याप्ति शरीर बदले बिना भी अलग भव गिनने में किसी तरहको बाधा नहीं हो सकती ( नहीं बनने योग्य बात आश्चर्य ने बनती है) इस लिये समवायांगमें बलय भव मिना है और कोई साधु मादि इसी क्षेत्रने चातुर्मास रहे तो वे वहां रोग मारी स्वचक पर चक्र भव तथा भनीति वगैरह कारणोंने चौमासाने भी दूसरे
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