Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 358
________________ [2 ] स्वान देखे उसका फल सासरन्द्रने भाकर तीर्थंकर पुत्र होने कहा था वैसे हो त्रिशला माताको भी तीर्थकर पुत्र होनेको इन्द्रने आकर कहा है और १४ स्वपनका फल इन्द्र की आशानुमार देवताओंने सिद्धार्थ राजाके राज्य भुवन भण्डारादिने निधानादिकों को स्थापन किये हैं। यह सब बातें मी हेमचन्द्राचार्यजीने खुलासा लिख दिया है। सो अपरके पाठ प्रत्यक्ष दिख रहा है और भी हरिभद्रसूरिजी कृत आवश्यक सहद् यत्ति २२ हजारी टीका भी भगवान्को देवानन्दाके गर्भमें ८२ दिन व्यतीत हुए बाद इन्द्रने जाना विचारा और उत्तम कुल में स्थापन करवाये खुलासा लिखा है और कल्पसूत्रके मूल पाठमें तथा कल्प सूत्रकी सब व्याख्याओंमें भी इन्द्रने भगवान्को देवानन्दाके गर्भ में देख सिंहासनसे उठ नमोत्थुणं रुप नमस्कार किया और पूर्व दिशाके सिंहासन पर बैठकर भगवान् के पूर्व भवोंका स्वरूप विचारकर देवनन्दा गर्भ में भगवान् के उत्पन्न होनेको आश्चर्य रूप समझ कर उत्तम कुलमें हरिणेगमेषी द्वारा उत्तम कुलमें पधराये और सिद्धार्थ राजाके घरमें देवता ओंको आज्ञा करके स्वर्ण रत्नादि निधानोंको स्थापन करवाये खुलासा लिखा है परन्तु नमोत्थुणं करनेके बाद कल्पांतर में उत्तमफुलमें भगवानको पधराये ऐसा नहीं लिखा है और जब भगवान् देवानन्दाके गर्भ में आये उसी समय इन्द्रका आसन चला यमान होनेसे इन्द्रने अवधिो देखके नमोत्युण किया ऐसा भी नहीं लिखा है। और उपरोक्त पाठोंमें ८२ दिन व्यतीत हुए बाद आशन चलायमान हुभा अवधिसे भगवान्को देख नमस्कार याने नमुत्युण किया खुलासा लिखा है इसलिये कल्प सूत्रका नमोत्थुणं संबंधी पाठ मी ८२ दिन बाद समझना चाहिये क्योंकि देवानन्दा अपने पतीके पाससे १४ स्वप्न देखनेसे उत्तम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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