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[१३] देवताओंभागमन सम्बन्धी लेख शास्त्रों में देखने नहीं पाता और दूसरा च्यवन तो खास इन्द्रने भाकर १४ महा स्वप्नोंका फल तीर्थ कर पुत्र होनेका कहा और देवताओंको आज्ञा करके सिद्धार्थ राजाके वहां धन धान्यादिफी सद्धि करवाया है इसी प्रकार पहिले च्यवनसे भी विशेष कार्य दूसरे च्यवन में होनेका शास्त्र प्रमाणों द्वारा प्रत्यक्षपने देखने आतापस लिये पहिले च्यवनसे भी दूसरा च्यवन विशेष अधिक माननीय ठहरता है तो फिर उसको माननेका निषेध करना या उसने व्यवनके कर्तव्य होनेको शङ्का करना सो सर्वथा अनुचित है क्योंकि दूसरे च्यवनमें भी च्यवन सम्बन्धी सब कर्तव्य हुए हैं सो तो ऊपरके लेखसे विवेकी पाठक जन स्वयं विचार लेवेगे
और पाशवनाथजी नेमिनाथजी और आदीश्वर भगवान् के च्यवन सम्बन्धी कार्यों को त्रिशला माताकी तरह जान लेनेकी कल्प सूत्रको तप गच्छादि सब गच्छोंके व्याख्या कारोंने भलामण सूचना करी है परन्तु देवानन्दाकी नहीं करी इसलिये यदि त्रिशलाके गर्भन भगवान्के मानेको च्यवनके कर्तव्य न मानोगे तो पार्श्वनाथ नेमिनाथ आदीश्वरके च्यवन कर्तव्यमें नमोत्थणं वगैरह नहीं माननेकी भापत्ति आवेगी इस लिये त्रिशलाके गर्भ में आने सम्बन्धी च्यवनके नमोत्थुणं वगैरह कर्तव्य मानने ही न्यायानुसार उचित है और त्रिशलाको भगवानकी जन्म माता कहने पर भी त्रिशलाके गर्भ में आनेका च्यवनको नहीं मानने वालोंको त्रिशलासे जन्म भी नहीं मानना चाहिये क्योंकि च्यवनडे बिना जन्म नहीं हो सकता यह जगत प्रसिद्ध सर्वमान्य प्रत्यक्ष बात है और देवानन्दाके च्यवन मान कर त्रिशलाके नहीं माने तो नहीं बन सकता क्यों कि इन्द्रकी मानासे हरिणेगमेषी देवताने देवानन्दाकी कुक्षिसे लेकर विश.
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