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[८१२] अनादि नियम है इसके अनुसार भी जब भगवानको त्रिशला माताके पुत्र कहते हो तो त्रिशला माताके गर्भ में आनेको च्यवन कल्याणक कहना और उसके कर्तव्य उस समय में मानने सो तो न्यायानुसार प्रत्यक्षपने सङ्गतिको प्राप्त होता है इसपर भी नहीं माननेवालोंको स्थानांग आधीरांग समचार्यागादि उपरोक्त शास्त्र पाठोंके उत्थापनका दूषण लगता है इसको भी पाठक गण स्वयं विचार लेवेगे।
और जब समवायांगादि भगवानके देवलोकसे देवानन्दा के गर्भन मानेको पहिला च्यवन तथा देवानन्दाके गर्भ से निकलने रूप प्रथम जन्म मान कर त्रिशलाके गर्भ में जाने रूप दूसरा च्यवन और त्रिशलाके गर्भ से निकलने रूप दूसरा जन्म खुलासा शास्त्रों में लिखा है उससे दो भव दो माता दो च्यवन स्वयं सिद्ध है और शास्त्रकार महाराज जिस बातका वर्णन पहिले १ जगह कर देखें उसी बातका वर्णन आगे दूसरी वार पुनरुक्ति के कारणसे नहीं करते हैं और जिस बातका वर्णन आगे करनेका होवे उस बातका वर्णन पहिले मी पुनरुक्तिके कारणसे नहीं करते हैं और वीर प्रभुके तो दो च्यवन होने से दोनों माताओंने अलग अलग १४ महा स्वप्न दो बार देखा है इस लिये दो वार १४ महा स्वप्नोंका वर्णन करना चाहिये
और दो वार वर्णन करें तो पुनरुक्ति आवे तथा विस्तार भी ज्यादा विशेष हो जावे इस लिये पहिले च्यवनमें देवानन्दा सम्बन्धी १४ स्थानोंका नाम मात्र ही बतलाया और दूसरे च्यव. म त्रिशला माता सम्बन्धी १४ स्वप्नोंका अच्छी तरहसे सूत्र कारने और उसकी व्याख्याकारोंने विस्तारसे वर्णन किया है और संग्रहणीमें तीर्थकरके च्यवन जन्मादि कल्याणकोंमें देवताओंका आगमन लिखा है सो भी वीर प्रभुके पहिले च्यवनमें
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