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में ऊपरकी गाथा कथन करी है उससे यह बात प्रगटपने दिखती है कि वर्तमान कालमें कलयुगी प्राविका नाम धारण करने वाली स्त्री मूलनायकको अङ्ग पूजा करनी और वीरप्रभुके गर्भ हरणको कल्याणक नहीं मानना यह मन्तव्य उन चैत्यवासियों के सम्मत है ऊपरकी दो बातें चैत्यवासी मानते हैं इससे यह सिद्ध हुआ कि वे जपरकी दो बातें पूर्वाचार्यों को सम्मत नहीं है अर्थात भ्रष्टाचारी चैत्यवासी वैसा मानते हैं परन्तु आज्ञा आराधक पूर्वाचार्य तो वीरप्रभुके गर्भहरणको दूसरे च्यवन रूप कल्याण करवपने में माननेका तथा नगरके संघके मन्दिरमें चमत्कारी प्रभावक मूलनायककी प्रतिमाजी का प्रभाव चमत्कार आशातनासे कम न होनेके लिये तथा आशातनासे अधिष्टायक देवके न चले जाने के लिये और शासन की रद्धि होती रहनेके लिये सघवासयोवना अविचारवान् तरुण स्त्री मूलनायककी केसर चंदनादिसे अङ्ग पूजा न करे एसा मानते हैं इस मूजब उपरकी गाथासे सिद्ध होता है इस लिये ऊपरकी गाथा, चैत्यवासियोंका मन्तव्य इम महाराजने दिखाया है परन्तु गर्भापहारको कल्याणकत्वपने में निषेध नहीं किया हैं इस लिये धर्मसागरजीने ऊपरकी गाथासे छठे कल्याणकका निषेध किया सो अपनी अज्ञानतासे हासीका कारण किया है इस बातको विवेकी पाठकगण स्वयं बिचार लेवेगे
और यद्यपि पूर्वकालमें विवेकी द्रोपदी वगैरह सतीयोंने मूलनायककी अङ्ग पूजा करी थी ऐसे शास्त्रों में बहुत प्रमाण मिलते हैं तोभी कालानुभावसे वर्तमानमें वो बात मुख्यतयानहीं रही और बाल कुमारिका तथा रजस्वलाके रोध वा वृद्ध स्त्रीय मूलनायकको अङ्ग पूजा करें किन्तु अकालरितु भाव (रजस्वला) हो मके कारण मूलनायकको महान् भाशातनासे उनका चमत्कार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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