Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 336
________________ [ ७८७ ] देखो ऊपरको गाथासे छठा कल्याणक निषेध नहीं हो सकता किन्तु शास्त्रोक्त सिद्ध होता है क्योंकि देखो भोजिनदत्त सूरिजी महाराजने “उत्सूत्रपदोद् घाटण कुलक" में ऊपरकी गाथा कथन करी है इस गाथाका भावार्थ ऐसा है कि इन महाराज के समय में चैत्यवासी लोग शिथिला चार में पड़कर अनेक तरहकी शास्त्रोक्त विधि मार्गको सत्य बातोंको छोड़ बैठे थे और शास्त्र विरुद्ध अविधिकी कितनी ही बातें करने लग गये थे उसमें श्रीवीर प्रभुके गर्भापहार रूप दूसरे च्यवन कल्याणकको माननेका निषेध करते थे तथा मन्दिर में रात्रिको स्नात्र पूजा प्रतिष्ठा बलि विधान स्त्रियोंका आगमन दीवा बत्तियों की धूमधाम और सधवा सयोवना अनियमीत रजस्वला होनेवाली अविवेकी तरुण स्त्रियाँको नगरका श्री संघ के मंदिर में चमत्कारी प्रभावक सूल नायककी प्रतिमाकी केशर चन्दनादिसे अङ्ग पूजा करनेका और अधिक मासके ३० दिनोंको गिनती में लेनेका निषेध बगैरह कितनी ही विरुद्धा चरणके वर्तावको अनुचित बातोंकी प्रवृत्ति करने लग गये थे और आत्मार्थी आज्ञाके आराधक शुद्ध संयमी विधि मार्गनें चलने वाले बहुत थोड़े रह गये थे उनका मन्तब्य तो वीर प्रभुके गर्भापहार रूप दूसरे च्यवनको कल्याणकस्वपने मे माननेका तथा मंदिर में रात्रिको स्नात्रादि करनेका दीवा बत्तीयोंकी धूम धाम स्त्रियोंका रात्रिमें मंदिर में आगमन और अनियमीत रजस्वलाके कारण अविवेकी सयोवना सधवा स्त्रीको संघके मन्दिर में मूलनायककी प्रतिमाको अङ्ग पूजा नहीं करनेका था इस लिये आगमानुसार तथा आत्मार्थी पूर्वा चार्यों की कालानुसार लाभालाभके विचारको आचरणानुसार श्रीजिनदत्त सूरिजी महाराजने “उत्सूत्रपदोंद् घाटनकुलक? www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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