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[ ७९२] विना श्रीजिनवलभसूरिजी महाराज पर ब्यर्थही झूठा दूषण लगाके प्रभाधिक आचार्यों के अवरण वादसे निज परकै दर्लभ बोधिका कारण किया है क्योंकि सामान्यता से सर्व तीर्थकरोंकी अपेक्षासे २४ ही तीर्थ कर महाराजोंके पांच पांच कल्याणक कहे जाते हैं उसी अपेक्षासे श्री अभय देव पूरिजीने पंचाशकमें पांच कल्याणक कथन किये हैं तैसे ही श्री जिनवल्लभ सूरिजीने भी चौवीस जिनस्तवनाधिकारे सामान्यतासे वहां पांच कल्याणक कहे हैं वैसे हम लोग भी सब तीर्थकरों की अपेक्षासे सामान्यता करके पांच ही मानते हैं परन्तु जैसे बी अभयदेव सूरिजीने ही खास भी स्थानांग सूत्र की टीका करते हुए सूत्रके मूलपाठानुसार भी पद्म प्रभुजी आदि १३ तीर्थ कर महाराजोंके सामान्यतासे पांच पांच कल्याणक बतलाये और विशेष रूपसे भी पद्म प्रभुजी आदि १३ तीर्थ करोंकी तरह ही २४ वें वीर प्रभुके पांच कल्याणक हस्तोतर नक्षत्र और छठा निर्वाण कार्तिक अमावस्याको स्वाति नक्षत्रमें खुलासा दिखाके विशेष रूपसे छ कल्याणक कथन किये उसी तरहसे यो जिनवल्लभ सूरिजीने भी भी कल्प सूत्र और आचारांग सूत्रादिके मूल सूत्र पाठके अनुसार विशेष रूपसे वीरप्रभु के छ कल्याणक कथन किये हैं वैसे हम लोग तथा जिनाज्ञा माराधक आत्मार्थी सब कोई विशेषतासे छ कहते हैं इसलिये सामान्य विशेषके भेदसे पांच छ दोनों बात मानने में और कथन करने में किसी तरका मत भेद अज्ञानता उत्सूत्रता होलना न समझना चाहिये जिस जगह जैसा प्रसंग हो वे वहां वैसा ही कथन करने में आता हैं इस सामान्य बातमें विशेष बात न दिखावे और विशेष बातमें सामान्य बात न दिखावे तो मा किसो सरहका हरजाकी
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