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[ ७९३ ] बात नहीं है कुतर्फ करना ही अज्ञानताका कारण हैं और शास्त्र कारोंके अभि प्रायको समझे बिना एकांत पक्षपाती होकर गच्छ कदाग्रहसे पांच कल्याणकको सामान्य बातको माननेका आग्रह करके स्थानांग आचारांग कल्प सूत्रादि मूल आगमों में लिखो हुई छ कल्याणककी विशेष बातको निषेध करनेका हठवाद करनेवाले तीर्थंकर गणधर पूर्वाचार्यों की और जैनागमोंकी आशातमा होलमा करने वाले मज्ञानी उत्सूत्र भाषी ठहरते हैं परन्तु आत्मार्थियोंको तो दोनों बाते माननी चाहिये इस बातको विशेष विवेकी तत्वज्ञ सज्जन गण स्वयं विचार सकते हैं।
और श्रीजिन वल्लभ सूरिजी महाराजने हठसे अपना मत स्थापन करने के लिये नहीं आगमोक्त सत्य बातको प्रगट करी है इस लिये छठे कल्याणकका कथन करने में किसी तरहका दूषण नहीं किन्तु हठवादसे निषेध करनेसे आगम पाठउत्थापनका दोष लगता है तथा उन चैत्यवासिनी जतमीने तो आगमार्थको और महाराजके कथन को विवेक बुद्धिसे समझे बिना गच्छममत्वसे व्यर्थ हठ किया था जिसका निर्णय ऊपर में लिखा गया है परन्तु उस अज्ञानी चैत्यवासिनी जतमीको स्त्री जातिकी तुच्छ बुद्धि गच्छ कदाग्रहकी मूर्खताके अन्ध परंपरामें पड़कर विवेक शून्यतासे धर्मसागरजी वगैरहोंने भी उसी जतनीका अनुकरण करके छठे कल्याणकको निशेध करने के लिये उसका दृष्टान्त दिखाते हैं और अनेक तरहको कुयुक्तियोंसे आगमोक्त सत्य शातको झूठा ठहराने के लिये श्रीजि नवल्लभ मूरिजी महान् प्रभावक युग प्रधान उत्तम पुरुषको मूठा दूषण लगाने वाले बर्तमानिक विद्वान् नाम घराने वाले कदाग्रहियोंको लज्जित होकर ऐसा कदाग्रह छोड़ना चाहिये और
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