Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 334
________________ [ ७८५ ] पूर्वाचार्यो शत्रु मज्ञानी समझना चाहिये इस बातको विशेष सूपसे तत्वज्ञ सज्जन स्वयं विचार सकते हैं और भी गणधर सार्द्धशतकको १२२ वी गाथाकोटीका का विशेष निर्णय इस ग्रन्थके पृष्ठ ६१० से ६३७ तक छपचुका है वहांसे समझ लेना इस लिये इस गाथाको टीकासे भी छठा कल्याणक आगमोक्त गणघरादि महाराजोंका कथन किया हुमा उसके अनुसार इन महाराजने भी कहा है अब पाठकवर्गसे मेरा यहीं कहना है कि-धर्म सागरजीने मीगणधर सार्द्धशतकको मृत्तिकारके अभिप्रायको तथा इस पाठके पूर्वापर सम्बन्ध के भावार्थको समझे बिना या अभिनि वेशिक मिथ्यात्वसे माया वृत्ति करके बीच से थोडासा अधूरा पाठ वालजीवोंको दिखाके अपनी कल्पनासे छठे कल्याणक की नवोन प्ररूपणा करनेका उद्यम किया सो गच्छ कदाग्रह अन्ध परंपरा वालोंको और भोले जीवोंको मिथ्यात्वमें गेरने वाला होनेसे संसार सृद्धिका हेतु है इस बातका निर्णय इस ग्रन्थके पढ़ने वाले अपरके लेखसे विवेकी पाठकगण स्वयं कर लेवेंगे___ और चैत्यवासीनीका क्रोधयुक्त अनुचित वर्तावको देख कर मन्दिर में प्रवेश न किया पीछे लौट कर स्वस्थान आगये सो तो बहुत ही अच्छा किया क्योंकि आत्मार्थी जिनामा राधक शांत स्वभावो महात्माजन कलेश झगड़े के कारण कर्म बंधके हेतुसे दूर रहते हैं इस लिये यद्यपि महाराज मावकों के साथ मन्दिरजीमें देव बन्दन करनेको जाते-थे सो महाराज का कर्तव्य सत्य था तिस पर भी उन चैत्यवासिनीका गच्छ कदाग्रह देख कर पीछे लोट आये उससे इन महाराजका कथन शास्त्र बिरुद्ध कदापि नहीं हो सकता इस बातको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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