________________
[ ७८४ ]
, जानकर अपने गच्छ के मंदिर में प्रवेश भी नहीं करने दिया और मन्दिरके आडि गिर गई सो तो उनकी अज्ञानताका कदाग्रह समझना चाहिये परन्तु इन महाराजका कथन तो शास्त्रोक्त सत्य ही मानना चाहिये
तथा तीसरा और भी सुनो-जब चोतोड़ नगर में जिस समय श्री जिनवल्लभ सूरिजी महाराज विहार करते हुए पधारे उ समय वहां के जैनी नाम घराने वाले चैत्यवासियोंके दृष्टिरागी भक्तोंने नगर भरमें महाराजका ठहरने के लिये कोई भी स्थान न दिया तथ महाराज चामुंडा देवीके मन्दिर में ठहरे और वहां धर्मोपदेश द्वारा चैत्यवासियों की अविधिको निषेध करके विधि मार्ग जिनाज्ञाको प्रगट करने लगे तत्र वहां के चैत्यवासी लोग इन महाराज पर ध्वेष करके पांच सौ ( ५०० ) आदमी एकट्ठ े होकर लाठी लेके महाराजको मारने के लिये आये यह बात के इतिहास छपे हुए संघपटकमें तथा श्रीगणधर सांई शतक वृत्ति प्रकरणादिमे प्रसिद्ध है इस पर भी विचार करना चाहिये कि जब वे चैत्यवासी लोग नगर में ठहरने की जगह तक भी नहीं देने देवे तथा अपनी खराव आचरण के अवगुणों को देखे बिना उनको मारनेके लिये जावे पूरा द्वेषभाव रखे तो फिर उनको अपने मन्दिर में कैसे प्रवेश करने देवे अपितु कभी नहीं इस लिये उन चैत्यवासीनी जतनीने द्वेष बुद्धिसे अपने मन्दिर में महाराजको प्रवेश तक भी नहीं करने दिया यह तो द्वेषका कारण प्रत्यक्ष दिखता है और उनहीं अज्ञानी कदाग्रही चैत्यवासिनीका अनुकरण करके सत्यासत्यको परीक्षा किये विना आगमोक्त छठे कल्याणकका निषेध करनेके लिये श्री जिनवल्लभ सूरिजी महाराज पर कल्पित प्ररूपणका दूषण लगाने वाले उन चत्यवासीनी जैसे हो गच्छ कदाय ही जिनझाके और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com