________________
... [ ६०१ ] की परम्परानुसार अनुक्रमसे श्रीजगचन्द्र सूरिजी तक पहावली मिलाने संबंधी कोई पहावली वा पुस्तक नहीं मिल सकी होवे तो उससे बिना परम्पराके रहनेके भयसे श्रीचैत्रवालगच्छसे परम्परा मिलाना छोड़कर श्रीबड़गच्छसे परम्परा मिलाकर श्रीमहावीर स्वामीके परम्परा वाले बननेके लिये "श्रीजगचंद्रसूरिजी पहिले वडगच्छुके थे" ऐसा आलम्बन लेना मान्य किया होवे तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने परन्तु तो भी इसमें श्री जिनाज्ञाकी विराधनाका कारण होनेसे ऐसा आलंबन लेना उचित नहीं है क्योंकि श्रीचैत्रवाल गच्छ भी तो श्रीमहावीर स्वामीकी परम्परा वाला है इस लिये ऊपरका आलम्बनको छोड़कर उसही गच्छसे परम्परा मिलाना उचित है, जिसमें काल दोषादि कारणोंसे पूरी पहावली नहीं भी मिल सके तो भी कोई हरजा नहीं है क्योंकि श्री महावीर स्वामीके शासनमें अनुक्रमसे परम्परागत कितने ही नैमित्त कारणोंसे कितने ही गच्छ, कुल, शाखा, वगैरह अनेक हुए थे उन्होंमेंसे किसीके विशेष ज्यादा समुदाय होगया, किसीके कम, तथा किसीकी बहुत पीढ़ियों तक परम्परा चली किसीकी थोड़ी पेढ़ियों तक ही, और कितने ही विच्छेद भी होगये और कितनोंके यद्यपि परम्परासे पूर्वाचार्य होते आये तो भी काल दोषादि कारणोंसे पहावली नहीं मिलती और कितनोंके वीचमें से त्रुटक पहावली मिलती है, कितनोंके पाठांतरसे मतभेदकी मिलती है और किसीके बिलकुल नहीं मिलती तो क्या वे संयमी गण श्रीमहावीर स्वामीकी परम्परा वाले नहीं गिने जावेंगे सो तो कदापि नहीं किन्तु अवश्यमेव गिने जावेंगे, इस लिये यदि श्रीचैत्रवाल गच्छकी पूरी पहावली नहीं मिल सके तो भी कोई नुकसानकी बात नहीं परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com