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ऐसे लिखते कहते चले जाते हैं और आपसमें कदाग्रह बढ़ाते हैं उन्हींकों उपरोक्त लेख बांचकर लज्जित होना चाहिये और अभिनिवेशिक मिथ्यात्वके हठवादको छोड़कर सरलता पूर्वक सत्य बात ग्रहण करनी चाहिये। ___ और अपना घर भी तो देखना चाहिये कि श्रीदेवेन्द्रसूरिजी श्रीक्षेम कीर्तिसूरिजी वगैरहोंने वडगच्छको छोड़कर चैत्रवालगच्छ को खुलासा पूर्वक लिखा है जिसको तो मानने में न मालूम किस कारणसे उज्जा करते हो और इन पूर्वाधार्यो के लिखे चैत्रवाल गच्छसे परम्परा मिलाना छिपाकर श्रीजिनाजा और अपने पूर्वाचार्योके विरुद्ध होकर प्रत्यक्ष विपरीत वहगच्छसे परम्परा मिलाते हो सो “अकरतोगुरुवयणं, अणन्त संसारीओ, भणिओ" इस वाक्यानुसार माप लोगोंका कितना संसार माना जावे सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने और अपने घर में तो बिना लिखे भी मनमाना चाहे जैसा विपरीत वर्तावको भी मान बैठना और दूसरे महापुरुषोंके अभिप्रायको समझो बिना कुविकल्प उठाना सो बाल लीलाके सिवाय और क्या होगा। इसलिये दूसरेके वास्त कुयुक्ति करना वोही अपने सिरपर गिरने लगे वैसे कदाग्रहको छोड़नाही आस्मार्थो अल्पकर्मियोंका काम है।
शङ्का-अजी आप तो उपरोक्त पूर्वाचार्यों ने अपनी अपनी गच्छ परम्पराके पक्षपातरूप बन्धनके वाई का कारण न होनेके डिये अपना खरतर विरुद नहीं लिखा ऐसा कहते हो तो फिर १४००।१५०० से तो खरतर गच्छके बहुत आचार्य अपना खरतर गच्छ लिखने लगे थे और वर्तमानिक समयमें तो बड़े जोर शोरसे लिखते हैं जिसका क्या कारण है।
उत्तर-भोदेवानु प्रिय? संवत् १४००।१५००से तथा वर्तमानमें खरतर लिखनेका तो यही कारण है कि यद्यपि श्रीजिनेश्वर
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