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( १६८ ) तथा और भी सुनो जब खास सूत्रकारनेही च्यवन गर्भहरण जन्मादिका भिन्न भिन्न व्याख्यान विस्तारसे कथन कर दिया तथा इस विषयमें पूर्वाचार्योने वीर चरित्रादि, तथा कल्पसूत्र की टीकाओं में हजारों श्लोकोंकी विस्तार पूर्वक व्याख्या करी है और राज्याभिषेक सम्बन्धी विशेष खुलासा किसी जगह पर किसी भी पूर्वाचार्यने नहीं किया इसलिये गर्भहरणके समान राज्याभिषेकको ठहराना कदाग्रहके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है और गर्भहरण सम्बन्धी हजारों श्लोकोंकी व्याख्या प्रसिद्ध होनेसे असङ्गति रूपी शङ्काके गन्धकी भी सम्भावना नहीं हो सकती इसलिये असङ्गतिका कहना भी व्यर्थ है क्योंकि असङ्गति तो जब कह सकते थे कि-१४ स्वप्न त्रिशलामाताने आकाशसे उतरते और अपने मुखमे प्रवेश करते वगैरह च्यवन कल्याणकके लक्षण गर्भापहारमें न होते तथा सूत्रकारने "चठ हत्थुत्तरे" कहके च्यवन देवानन्दा जन्म । त्रिशला कह देते और इस विषय में किसी तरहका खुलासा न करते तब तो असङ्गति रूपी शङ्काका कहना बन सकता और इस विषयमें टीकाकारों को समाधान करनेकी जरूरत पड़ती सो तो नहीं किन्तु खास सूत्रकारादिकोंनेही "पञ्चहत्थुत्तरे" कहके विस्तारसे कथन किया है तथा उसमें कल्याणकत्वपके लक्षण प्रत्यक्षही देखने में आते है इसलिये असङ्गति वगैरह कुविकल्पों की कुयुक्तियों को छोड़कर सत्यग्रहण करनाही प्रेयकारी है इसका भी विशेष निर्णय विनयविजयजीके लेख की समीक्षा पहिले छप चुका है। __और "सन्देहविषौषधी" में गर्भापहारको कल्याणकत्वपने में गिनकर छ कल्याणक प्रतिपादन किये जिसका निषेध करनेके लिये धर्मसागरजीने गर्भापहारको कल्याणकरवपने किसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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