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होनेसे श्रीकल्पसूत्रादिमें प्रगटपने राज्याभिषेकको अलग करके "चउ उत्तरा साढ़े अभिइपञ्चमें" ऐसा खुलासा पाठकहके राज्याभिषेकके बिना शेष च्यवनादि पांच कल्याणक कथन किये हैं इसलिये राज्याभिषेक की आड़ लेकर गर्भापहारके कल्याणकत्वपनेको निषेध करना पूरी अज्ञानता है इसको विशेष तत्वज्ञजन स्वयं समझ सकते हैं।
और गर्भापहारको इन्द्र महाराजका कार्य समझके कल्या. णकपना नहीं मानते क्योंकि इन्द्र तो अन्य भी अनेक कार्य करता है परन्तु सब कार्यों में कल्याणकपना नहीं माना जाता (जैसे श्रीआदि नाथजीकी वंशस्थापना, पाणी ग्रहण, राज्याभिषेक इत्यादि) किन्तु गर्भापहारमें तो च्यवन कल्याणकके गुण लक्षण स्वभाव होनेसे कल्याणकपना मानने में आता है इसका विशेष खुलासा इस ग्रन्थको पढ़नेवाले विवेकी स्वयं समझ लेवेंगे।
और फिर भी धर्मसागरजीने गर्भापहारका कल्याणकपना निषेध करनेके लिये नक्षत्र सामान्यताका तथा असङ्गतिका बहाना लिया सो भी अज्ञानता है क्योंकि श्रीस्थानाङ्गजी सूत्रमें तो नक्षत्र सामान्यता तथा असङ्गतिका कुछ भी प्रसङ्ग ( कारण) नहीं है क्योंकि वहां तो सामान्य व्याख्यासे श्री. पद्मप्रभुजी आदि १३ तीर्थङ्कर महाराजो के च्यवनसे यावत् मोक्ष गमन पर्यन्त पांच पांच कल्याणक बताये हैं उसी मुजब विशेष रूपसे श्रीवीरमभुके भी च्यवनसे यावत् गर्भापहारको कल्याणकपने में सामिल ले करके केवल ज्ञान पर्यन्त पांच कल्याणक दिखाये हैं और वृत्तिकार श्रीअभयदेवमूरिनीने छठा कल्पाणक स्वाति नक्षत्र मोक्ष गमन खुलासा मग बतलाया हैसपा श्रीसमवायाजी बत्ति, गर्भापहारको अलग मवर्ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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