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( ७७२ ) तथा और भी देखो श्रीआदिनाथजीको दीक्षा लिये बाद १ वर्ष पर्यन्त आहार न मिला यह बात सामान्यतासे कहने में आती है परन्तु विशेषतासे तो चैत्र कृष्ण अष्टमी (गुजराती फागण बदी ८) को दीक्षाके दिनके हिसाबसे वैशाख सुदी ३ के दिने पारणेको १३ मास और ऊपर ११ दिन होते हैं तो भो सामान्यतासे वर्ष कहने में आता है इसी तरहसे तीर्थङ्कर महाराजोंके गर्भ स्थिती वगैरह सामान्यता विशेषताके हजारों दृष्टान्त शास्त्रों में देखने में आते हैं इसलिये अक्षरार्थकों न पकड़के भावार्थको देखना चाहिये उसके बिना समझे व्यर्थ झगड़ा करके कर्मवन्धक और उत्सूत्री न होना चाहिये । ___ और फिर कुलमण्डनसूरिजीने कल्पावचूरिमें छः कल्याणक डिखे हैं उसको धर्मसागरजीने बिना उपयोगसे और सन्देहविषौषधि के अनुसार लिखनेका ठहराया सो भी गच्छकदाग्रहकी अभिनिवेशिकतासे व्यर्थही मिथ्या प्रलाप किया है क्योंकि सर्वशास्त्राने खुलासा पूर्वक छ कल्याणक लिखे हैं इसलिये बिना उपयोगसे नहीं किन्तु जान बूझकर शास्त्रानुसार लिखे हैं और सन्देहविषौषधि के अनुसार लिखे वैसा धर्मसागरजीको कोई ज्ञान नहीं था इसलिये सन्देहविषौषधिका अनुसरणका कहना व्यर्थ है और सत्य बातमें एक एकके कथनका पूर्वाचार्य अनुसरण करतेही हैं इसमें कोई हरजकी बात नहीं है इसलिये उपरोक्त सत्य बातमें यदि अनुसरण किया माना भी नावे तो उससे छकल्याणकका निषेध नहीं हो सकता इसका विशेष निर्णय न्यायाम्भोनिधीजीके लेखकी समीक्षा, पहिले उप चुका है।
और जिस विषयका वादविवाद चलता हो उस विषय जो लिखेगासो विचारकही लिखेगा इसके न्यायानुसार कल्या. 'नक सम्बन्धी विवाद तो श्रीकुलमबहमसूरिजीके पहिलेही चला
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