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( 30 ) अनामतासे मायाचारीकी ठगाईयोंकि वहां तो "पचमहाकल्लाणा सव्वेसिं जिणाणं होंति णियमेण" इत्यादि पूर्व भागके सम्बन्धकी ३ गाथा छोड़ दी है तथा “अहिगय तित्थ विहाया भगवन्ति णिदंसिया इमेतस्स। सेसाणवि एवंचियणियणिय तित्थेनु विणणेया इत्यादि पिछाड़ीके सम्बन्धकी भी गाथा छोड़ दी है और पूर्वापर सम्बन्ध सहित उन गाथाओंकी टीकाका पाठ भी छोड़ दिया है और पूर्वापर सम्बन्ध रहित बीच से थोडासा अधूरा पाठ दिखाया और मूलग्रन्थकर्ता भी. हरि भद्रमूरिजीके तथा वृत्ति (टीका) कारक भीअभयदेवमूरिजी के अभिप्रायको छुपा करके इन महाराजोंके अभिप्राय विरुद्ध हो करके अधूरे पाटसे मायाचारी करके भद्रजीवोंको भरमानेका काम किया है क्योंकि यदि पूर्वापर सम्बन्ध सहित सम्पूर्ण पाठ लिख दिखाते तब तो सामान्य विशेषके भेदको और शास्त्रकारों के अभिप्रायको विवेकी जन स्वयं समझ लेते, और मायाघारीकी तस्कर त्तिके सब भेद खुल जाते खैर इस विषय सम्बन्धी शास्त्रकारों के अभिप्राय सहित सम्पूर्ण पाठ पूर्वक हमने विस्तारसे समाधान न्यायरत्नजी तथा विनय विजयजी और न्यायाम्भोनिधिजीके लेखकी समोक्षामें लिख दिखाया है इसलिये पञ्चाशकजी के सामान्य पाठको बालजीवोंके आगे करके कल्पसूत्रादिके विशेष पाठोंमें छ कल्याणक कथन किये है उसका निषेध करना सो अज्ञानता और गच्छकदाग्रहके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है इसका विशेष निर्णय हमारे पूर्वोक्त लेखोंसे विवेकी जन स्वयं समझ लेबैंगे;
देखिये कितने बड़े आश्चर्यकी बात है कि-पीतपगच्छ में पतमानिक समय में अनेक विद्वान् नाम धराते हैं तिसपर भी
शास्त्रकारोंके अभिप्रायको समझे बिना अनन्त दीर्थकर महाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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