Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ [ ७८०.] विचारणेको देखा देखी वर्तमानिक विद्वान् नाम धरने वाले होकरके भी सत्यासत्यका निर्णय किये बिना शास्तोत छठे कल्याणकको सत्य बातको मूठी ठहरानेके लिये उपसेक चैत्य वासिनीका अनुचित बर्तावको आगे करके गच्छ कदापहले महान् पुरुषोंको मिथ्या दूषण लगाते हैं जिन्होंको उपरोक लेख बांचकर लज्जित होना चाहिये और अपनी विद्वत्ताको हांसी कराने वाला अंध परंपराका, हठवादको छोड़कर सत्य ग्रहण करना चाहिये इसका विशेष निर्णय निष्यक्षपाती विवेकी तस्व. सुजन स्वयं समझ लेवेंगे और आज उपरोक्त विषयमें सत्य ग्रहणाभिलाषी पाठक गणको विशेष निस्संदेह होने के लिये यहां पर प्रत्यक्ष दृष्टान्त दिखाता हूं सो देखो-आज काल वर्तमान में जितने ही विवेक 'शून्य कदाग्रही मत वासियों में उन चैत्यवासियोंके जैसा दुष्टा ग्रहका वर्ताव देखने में आता है जो जैसे कितने ही शहरों में कितने ही अज्ञानी दढियें लोगोंने " जिनेश्वर भगवान्की रथ यात्राका वर घोड़ा वाणित्रादि सहित. गीत गान पूर्वक" अपने स्थानकके आगेसे होकर नहीं जाने देनेका मान रक्खा है उन शहरों में कोई आचार्यादि मुनिराज पधारहों वे वहांके भारम कल्याणार्थी भक्त प्रावकोंको धर्मोपदेश द्वारा अठाई उच्छव जिन पूजन रथ यात्रादिसे शासनका प्रभावना करने वाले को बोधिबीजकी प्राप्ति सम्यक्त की शुद्धि और अनंत लाभका कारण बतलाया होवे उसको सुनकर हृदयमें धारके कितने ही भक्त प्रावकोंने श्रद्धा पूर्वक श्रीजिनेश्वर भगवान्की भक्तिके लिये और शासन प्रभावनाके वास्ते अठाई उच्छवी रथ यात्रा का वर घोड़ा वाजिनादि सहित भगवानके गुणोंका कीर्तन पूर्वक जय बनिसे निकालना शुरू किया होवे वहां बाजार या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380