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खुलासा सहित कथन श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिके पाठका किसी भी शास्त्र में खुलासा न होनेसे तथा गर्भापहारकी तरह राज्याभिषेकको कल्याणकत्वपना प्राप्त न होनेसे दोनों पाठोंको समान बनाना अज्ञानताका कारण है और पहिले इसका विशेष निर्णय श्री विनयविजयजी तथा श्रीन्यायाम्भोनिधिजी इन दोनों महाशयोंके लेखकी समीक्षा में इसीही ग्रन्थमें छप चुका है
और ऊपरके दोनों पाठोंके कथन करने में " सूत्रकाराणां विचित्र गतिरिति नाधृति विधेया" इस तरहका लिखके दोनों सूत्रकार महाराजों पर आक्षेप रूप लिखा सो भी इनके दीर्घ संसारीपनेका लक्षण मालूम होता है अन्यथा दोनों सूत्रकारों के भिन्न भिन्न विषय सम्वन्धके अभिप्राथको समझे बिना अपनी कुबुद्धिकी विकल्पना से सूत्रकारोंपर ऐसा आक्षेप कदापि
न करता खैर
और अनादि अनन्तकालसे सर्वदा हमेशा सभी श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके च्यवनादि पांच पांच कल्याणकही होते हैं परन्तु इन पांचोंके सिवाय अन्य कोई भी छठा कल्याणक नहीं हो सकता और श्रीवीरप्रभुके तो कर्मानुसार कालानुभावसे आश्चर्यजनक दो वार च्यवन होनेसे दो अलग अलग भव गिने गये और दो माता तथा दो पीता भी अलग अलग गिने गये और प्रथम च्यवनकी तरह दूसरे च्यवन रूप गर्भापहारमें भी च्यवन कल्याणक के सभी कर्त्तव्य हुए सो तो प्रसिद्ध है इसीलिये श्रीवीर प्रभुके दो च्यवन मान करके ही दो च्यवन रूप दो कल्याणकों की गिनती से छ कल्याणक ठहरते हैं परन्तु श्रीऋषभदेव स्वामीके राज्याभिषेक के कर्त्तव्यमें तो पांचो कल्याकोंमें से किसी भी कल्याणकके कर्त्तव्य नहीं बने और पांचो कल्याणकोंमेंसे किसी भी कल्याणके लक्षण राज्याभिषेकमें न
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