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राजा दोनों विद्यमान थे, और श्रीजिनेश्वरमूरिजीको परम्परामें अनुक्रमें-मीजिनचन्द्रसूरिजी तथाश्रीनवाङ्गीतिकारक श्रीअभय देवमूरिजी, श्रीजिनवल्लभसूरिजी श्रीजिनदत्तसूरिजी,वगैरह महा पुरुषोंकी परम्परा आजतकचलरहीहैतथाश्रीजिनेश्वरमरिजीसे खरतर विरुद सम्बन्धी प्राचीन शास्त्रोंके प्रमाण भी मिलते हैं, उसोके अनुसार आपके पूर्वजने भी लिखा है इसलिये संवत् १०७७ में दुर्लभ राजाके परलोक जाने सम्बन्धी बातकी आड ले करके श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर विरुदका निषेध करना चाहो सो भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि-कितनी जगह दुर्लभराजा लिखा है और कितनी जगह भीमराजा लिखा है यह दोनों नाम पाठान्तरसे मानने में आते हैं और आपके पूर्वजने भीमराजा लिखा है इसलिये सं१०७७ में मृत्युकी आइसे, १०८० या १०८४ की बातका निषेध नहीं हो सकता । उसी समय भीमराजा मौजद था ।
तथा और भी यहां पर विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये कि जब आपके पूर्वजने १४०० में श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर गच्छ लिखा तो इसके पहिले १२००।१३०० सौ में यह बात जैनमें प्रगटपने प्रसिद्ध होनी चाहिये, तथा उसी समयके शास्त्रों में भी लिखा हुआ होना चाहिये और तपगच्छके आचार्यादि भी इसी बातको मान्य करनेवाले होगे, तभी तो सं०१४०० में आपके पूर्वजने यह बात लिखी होगी अन्यथा कैसे लिखते, और उस समयके किसी भी पूर्वजने इस बातका निषेध भी नहीं किया इसडिये अभी थोड़े कालके धर्मसागरजी जैसे कदाग्रहियोंको कल्पनाको पकड़के प्राचीन सत्य बातको अस्वीकार करना
और अपने पूर्वजको भनाभोगका दोष लगाना आत्मार्थियोंका काम नही है।
और भी धर्मसागरजी तथा व्यायाम्भोणिधिनी इन दोनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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