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मुजब भीतीथंङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यों के कथन किये प्रमाण श्रीकल्पसूत्रके पाठार्थसे श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक भाष्यचूर्णिवृत्त्याद्यनुसार कथन किये थे, इसलिये गुरुसे लड़ाई करके क्रोधसे चैत्यवास त्यागने से खरतर कहलानेका और नवीन छ कल्याणकोंकी प्ररूपणा करनेका कहने तथा लिखने और माननेवाले प्रत्यक्ष मिथ्यावादी हैं, इसको विशेषतासे तो इस ग्रन्थको निष्पक्षपातसे सम्पूर्ण पढ़ करके सत्यग्रहण करनेवाले विवेकी आत्मार्थी जन स्वयं विचार लेवेंगे ।
और धर्मसागर जीने तथा न्यायाम्भोनिधिजीने श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराजसे खरतर विरुद निषेध करनेके लिये, अनेक तरह की कुयुक्तियों करके भद्रजीवोंको भरम में गेरे हैं, उन सब कुयुक्तियों की समीक्षा यहांपर करके पाठकगणको दिखाने की दिलमें बहुत है, परन्तु कितनेही कारण योगोंसे नहीं कर सकता हूँ, तो भी कितनी ही कुयुक्तियों की समीक्षा तो " आत्मभ्रमोच्छेदमभानुः " में छप चुकी है, और सब कुयुक्तियोंका विशेष निर्णय " प्रवचन परीक्षा निर्णय" नामाग्रन्थ में विस्तार से करनेमें मावेगा ;
और धर्मसागरजीने श्री जिनदत्तसूरिजी से खरतर उत्पत्ति ठहराने के लिये इन महाराजपर अनेक तरहके आक्षेप करके चामुण्डीक, औष्ट्रिक, खरतर लिखके कल्पित बातोंसे भद्रजीवों को भरमाये हैं, और मिथ्यात्वके साथ बाहीका काम किया है, वही अन्ध परम्परा विवेक शून्य कदाग्रही गुरुकर्मे लोग चला रहे हैं, जिसका निर्णय “आत्मभ्रमोच्छ दनभानुः” की पीठिकानें छप चुका है, और यहां पर भी विस्तार पूर्वक लिखनेका दिल था, परन्तु मेरे शरीरकी व्याथियोंके और थिरके दर्द के कारण से नहीं लिख सकता हूं, सो जिसके देखनेकी
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