Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 306
________________ ( ७५७ ) इच्छा होवे सो "आत्मभ्रमोच्छदनभानुः" को देख लेना, उससे सब निर्णय हो जावेगा;__ और श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर विरुदका निषेध करना, तथा श्रीजिनदत्तसूरिजीसे खरतर उत्पत्ति ठहराना सो प्रत्यक्ष मिथ्या है। क्योंकि श्रीजिनेश्वरसूरिजी सम्बन्धी अनेक प्रमाण मौजूद है। सो शास्त्र प्रमाण और युक्ति पूर्वक उपरनेही सब खुलासा छप चुका है। और श्रीजिनदत्तसूरिजी सम्बन्धी तो द्वेषी मिन्दक लोगोंके अन्ध परम्पराका गड्डरीह प्रवाही मिथ्या प्र. लापरूप कथनके सिवाय अन्य कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है। इसलिये श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर विरुद निषेध करनेका और प्रीजिनदत्तसूरिजीसे स्थापन करनेका प्रत्यक्ष मिथ्या कदाग्रहको छोड़ देनाही श्रेयकारी है। नहीं तो सत्य बातका निषेधसे और युगप्रधान शासन प्रभावकाचार्यको झूठे दूषण लगाके मिथ्या बातके स्थापनके लिये भद्रजीवोंको महापुरुषोंको निन्दा में गेरनेसे संसार वृद्धि और दुर्लभ बोधिके कारणसे संसारका पार होना मुश्किल है। आगे इच्छा आपकी- . ___ अब सत्य ग्रहण करनेवाले आत्मार्थी सज्जनोंसे मेरा इतना ही कहना है, कि अपने अपने गच्छकी अन्ध परम्पराके हठवादके दृष्टि रागको, और समुदायको मान पूजा प्रतिष्ठाके लोभको, और लज्जाको, छोड़ करके श्रीजिनाज्ञानुसार सत्य बातोंकों ग्रहण करो। इस अमादि अनन्त संसार भ्रमण, बारम्बार मनुष्य जन्म जैनधर्मकी योगवाई प्राप्त होना अतीव मुश्किली से है। इसलिये गच्छ कदाग्रहकी तुच्छ बातोंके विचार, चिन्ता मणीरत्नसे भी अधिक मीजिमाज्ञाको ग्रहण करने किचित् भी कदापि विलम्ब नहीं करना चाहिये। और उपरोक्त खोसे सत्यके भेदोंको तो निष्पक्षपाती विवेकीजमस्वयंसमझ सकेंगे। इसडियेबीवीरम के छठे कल्याणShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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