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(११) महाशयोंने, खरतरगच्छकी पांच पहावठी लिखके उसमें पूर्वाचार्यों के नामोंका पाठान्तर सम्बन्धी आक्षेप करके अपनी विद्वत्ता दृष्टि रागियों को दिखाई है, परन्तु विवेकी विद्वान् तो उनकी कुटिलताही समझते हैं, क्योंकि-श्रीमहावीरस्वामीके शासन में अनेक गच्छ, कुल, शाखा, अलग अलग निकली, जिसमें किसीका समुदाय बहुत बढ़ गया, किसीका कम हो गया और किसीकी बहुत काल तक परम्परा चली, किसीकी थोड़े काल तक, और कालदोषादि कारणोंसे किसीकी तो पट्टावली मिलती भी नहीं, किसीकी त्रुटक मिलती है, किसीकी पाठान्तरसे मिलती है, और यद्यपि परम्परागतसे-आचार्य, साधु, होते चले आते हैं, परन्तु पूरी पहावलीके अभावसे उनको कोई दोष नहीं लग सकता, और अपने अपने हाथों से अपना अपना नाम पहावली में पूर्वाचार्यो के लिखने की रूढी भी नहीं है और पिछाड़ी पहावली लिखनेवाले सर्वज्ञ भी नहीं होते हैं, किन्तु जैसे जैसे परम्परासे वा, दूसरोंसे सुननेमें आवे वैसीही पहावली बनानेवाले लिख देतेहै इसलिये पहावलीके पाठान्तर सम्बन्धी दोनों महाशयोंका आक्षेप करना सो गच्छकदाग्रहके अभिनिवेशिक मिथ्यात्वका कारण ठहरता है, इसको विवेकीजन स्वयं विचार सकते हैं। - और खास दोनों महाशयोंने जो अपनी पहावली लिखी है, सो भी तो कोई सर्वज्ञके कथनसे नहीं लिखी, और पीहीरविजयपूरिजीके पाठान्तर सम्बन्धी २३ मतान्तर “सेन प्रश्न" मामा ग्रन्थ में लिखे हैं और जहां गच्छ भेद-आपसमें विरुद्धता हो जाती है, वहां अपनी मूल पहावली वगैरह पुस्तक एक दूसरेको नहीं देते हैं, और कुसंप-अभिमानादि कारणोंसे दूसरे
के पास कोई मांगनेको भी नहीं जाता, और जैसा सुनने में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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