________________ [ 733 ] श्रीजिनशेखर मूरिजी "रुद्रपल्लीय खरतर" नामा खरतर गच्छकी दूसरी शाखा निकाली सो इस तरहसे अनुक्रमे कारणका योगोंसे (तप गच्छकी तरह ) खरतर गच्छमें भी वर्तमान समय तक में 12 / 13 भेद होगये हैं सो 12 / 13 गद्दी प्रसिद्ध हैं इस मुजन खरतर तप इन दोनों गच्छोंके 12 / 13 भेद दोनों गच्छवाले प्रायः सब कोई मान्य करते हैं यह तो प्रत्यक्ष ही प्रमाणकी बात है। और जैसे तपगच्छकी वृद्धपौशालिक शाखामें श्रीविजयचन्द्र सूरिजी श्रीक्षेमकीर्ति सूरिजी हुए हैं तथा लघुपौशालिक शाखामें श्रीदेवेन्द्र सूरिजी श्रीधर्मघोषसूरिजी वगैरह आचार्य हुए हैं और रुद्रपल्लीय शाखामें श्रीजि नशेखर सूरिजी वगैरह आचार्य हुए हैं और मूल रहत्खरतर गच्छमें श्रीजिनवम्लभ सूरिजी त्रोजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी श्रीजिनपति सूरिजी वगैरह बड़े बड़े शासन प्रभावक आचार्य हुए हैं सो तो आज तक भी प्रसिद्ध है और इसीलिये न्यायांभोनिधिका विशेषण धारण करनेवाले श्रीआत्मारामजी भी “चतुर्थस्तुति निर्णय” की पुस्तकमें श्रीजिनपति सूरिजीको उहत् खरतरगच्छ के लिखे हैं सो पुस्तक तो छपी हुई प्रसिद्ध ही है। इस बात किसीको सन्देह होवे तो उक्त पुस्तक देख लेना ___ अब यहांपर विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये कि-जब श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेव सूरिजी महाराजके शिष्योंसे ही खरतर गच्छकी शाखा अलग हो गई तो इन महाराज पहिलेसे ही खरतर गच्छ तथा इन महाराजके खरतर गच्छमें होनेका स्वयं ही सिद्ध हो चुका इसलिये खरतर गच्छके 13 भेदोंका प्रत्यक्ष प्रमाणसे भी श्रीजिनेश्वर सूरिजीसे खरतर विरुद सिद्ध होता है इसलिये इन महाराजसे खरतर विरुदका निषेध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com