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[ ७४१ ] योंका विहार कराना शुरू किया उससे वहां विधि मार्ग और संयमी साधुओंका प्रकाश होने लगा इसलिये इन महाराजके इस कर्तव्यको विशेष रूपसे भी मान सकते हैं इसलिये इन महाराजका इस कर्तव्यको श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनपतिसू. रिजी श्रीमुमतिगणी जी दूसरे श्रीमभयदेवसूरिजी वगैरह पूर्वाचार्य अपने ग्रन्थों में विस्तारसे लिखते आये हैं परन्तु खरतर विरुद पर इतना आग्रह न होनेसे इसको जगह जगह नहीं लिखा तो भी इसीका कारण लिखा हुआ है सो कार्यका सम्बन्ध जोडकर मान सकते हैं इसलिये उपरोक्त महाराजोंने खरतर विरुद नहीं लिखा तो भी कोई हरजा नहीं है। ___ और श्रीअभयदेवरिजी महाराजके तो श्रीजिनेश्वरसूरिजीने चैत्यवासियोंको जीते उसको तथा खरतर विरुदको लिखनेका प्रसङ्ग भी नहीं था क्योंकि प्रशस्तियोंके लेखोंमें कथानकरूपकी बातको नहीं भी लिखे तो कोई हरजा नहीं है
और कोंकी विचित्रताके कारणसे चैत्यवासी होगये थे, परन्तु वे लोग भी तो श्रीवीरप्रभुको परम्परावाले तथा सूत्रपत्ति आदि पञ्चाङ्गी और प्रकरणादि माननेवाले थे और श्रीमभयदेवसूरिजीने श्रीनवांग वृत्ति वगैरह जैनीमात्र सबगच्छवालोंके माननेके लिये बनाई थी किन्तु किसी एक पक्षके माननेके लिये नहीं और खरतर विरुद सम्बन्धी बात तो चैत्यवासियोंको और अन्य शिथिलचारियोंको मान्य नहीं थी इसलिये यदि श्रीनवांग रतिमें मीमभयदेवसूरिजी खरतर विरुदकी बात लिखते तो चैत्यवा. सियोंके और अन्य शिथिलाचारियोंके तथा खरतर विरुदके द्वेषी अन्य गच्छ वालोंके श्रीनवांग वृत्ति वगैरह इन महाराजके बनाये शास्त्रोंको मान्य करने में बाधा खड़ी हो जाती, और मीनवाङ्ग बत्ति सबगच्छवाले शिथिलाचारी चैत्यवासी या
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