________________ [ 740 ] भाषियों, सम्बन्धी क्या क्या लिखा है सो तो उपरोक्त महा. राजोंके रचे हुए ऊपर के ग्रन्थोंको देखनेसे मालूम हो जावेगा और तुमारी शङ्का मुजब तो यह सबी महाराज खरतरगच्छके तथा मोदेवेन्द्रसूरिजी वगैरह तपगच्छके नहीं ठहरेंगे सो कदापि नहीं हो सकता और बहुतसे ग्रन्थकारोंने तो अपना चान्द्रकुलादि भी नहीं लिखा परन्तु तुमारी शङ्का मुजब तो उनोंके चान्द्रकुलादि भी नहीं मानने चाहिये ऐसा कभी नहीं हो सकता सो इसलिये अज्ञानतासे ऐसी शङ्का करना व्यर्थ है इसको विवेकी पाठकगण विशेषतासे तो स्वयं विचार लेवेंगे। और श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेवमूरिजी श्रीजिनवलमसूरिजी श्रीजिनदत्तसूरिजी वगैरह इन महाराजोंने अपना खरतर गच्छ नहीं लिखा जिसका कारण तो यही है कि इन महाराजोंको इस खरतर विरुदके लिखने ऊपर इतना आग्रह अभिमान नहीं था क्योंकि श्रीजिनेखरसूरिजी महाराजने चैत्यवासियोंकी अविधि उत्सूत्रता शिथिलताका निषेध करके संयमियोंका शुद्ध व्ववहार विधि मार्गको भगवान्की आज्ञानुसार प्रगट किया था सो ऐसे करना तो सभी आत्मार्थी जैनी आ. चार्य उपाध्याय साधुका कर्तव्य रूप मुख्य धर्म ही है सो वोही श्रीजिनेश्वरसूरिजीने किया परन्तु विशेष कोई नवीन आश्चर्यकी अपूर्व बात नहीं करी थी, तो भी इस पञ्चमकालमें उस समय लिङ्गधारी चैत्यवासियोंका उपद्रव बढ़ गया था शिथिलताका प्रचार बहुत हो गया था और अपने नगरमें संयमियोंको आने भी नहीं देते थे और किसी किसी क्षेत्रमें संयमी अल्प रह गये थे इसलिये श्रीजिनेश्वरसूरिजीने अपने शुद्ध संयमका बर्ताव पूर्वक चैत्यवासियोंके उपद्रवका भय न करते हुए साहस करके महिलपुरपणमें आये और उन्होंको हटाने पूर्वक संयमी मुनि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com