________________ [ 38 ] श्रीअभयदेवसूरिजीके न लिखनेकी आड़ लेकर नहीं मानना, यह तो प्रत्यक्षही कदाग्रहका कारण दिखता है सो आत्मा. र्थियोंको करना उचित नहीं है। और यदि श्रीअभयदेवसूरिजीके खरतर गच्छ न लिखनेकी आड़ लेकर न मानोंगे तो श्रीदेवेन्द्रसूरिजीने,श्रीधर्मघोषसूरिजीने, श्रीक्षेमकीर्तिसूरिजीने, भी तो श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीको भीवडगच्छके नहीं लिखे हैं, और अपनी परम्परा भी बड़गच्छसे नहीं मिलाई है, और श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीको तपा विरुद धारक भी नहीं लिखे हैं, तो फिर श्रीअभयदेवसूरिजीके खरतर न लिखनेके आड़की तरह तो वर्तमानिक सब तपगच्छवालोंको भी भीदेवेन्द्रसूरिजी वगैरह अपने पूर्वजोंके वड़गच्छ तथा तपाविरुद न लिखनेको भी नहीं मानना चाहिये सो तो नहीं किन्तु विशेष रूपसे मानते हैं। सो यह तो प्रत्यक्षही अन्याय रुप अधर्म ठहरता है क्योंकि अपने पूर्वाचार्यों के म लिखनेको भी मान लेना और दूसरोंके पूर्वाधार्यो के न लिखनेकी आड़ लेकर निषेध करना यह बाललीलाके सिवाय और क्या होगा सो विवेकीजन स्वयं विचार लेवेंगे। और श्रीअभयदेवसूरिजीके खरतर न लिखनेकी आड़ लेकर इन महाराजको खरतरगच्छ में नहीं होनेका मानते हो तोइसीके अनुसार तो श्रीजिनवम्लभमूरिजी, श्रीदेवभद्रसूरिजी, श्रीवर्द्धमानसृरिजी, श्रीदेवेन्द्रसरिजी, श्रीविबुद्धप्रभसूरिजी, श्रीजिनदत्तमूरिजी, श्रीजिनचन्द्रसूरिजी, श्रीजिनपतिमूरिजी वगैरह खरतरगच्छके बहुत आचार्योंने अपने बनाये ग्रन्थों में अपना खरतरगच्छ नहीं लिखा है तथा ऐसेही तपगच्छवालोंने भी कितनेही ग्रन्थों में अपना तपगच्छ नहीं लिखा है। और दूसरे भी प्राचीन तथा थोड़े कालके कितनेही ग्रन्पोंमें ग्रन्थकारोंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com