________________ [ 732 ] कितनेही सूत्रों में और भावी चौवीशीके वर्तमानिक जीवोंके गतिके नामों में और युगप्रधान गंडिकाओंमें और इतिहासिक कथाओं में इत्यादि अनेक बातोंमें ज्ञानी महाराजोंके अभावसे और काल दोषादि कारणोंसे जूदेजूदे मतभेद पाठान्तर हो गये हैं परन्तु उन बातोंमेंसे एक बातको पकड़के दूसरीको निषेध नहीं कर सकते हैं तैसेही खरतर विरुद प्राप्तिमें भी कालदोषादि कारणोंसे मतभेद हो गया है परन्तु श्रीजिनेश्वर सूरिजीको खरतर विरुदको प्राप्ति होनेरूप यह मूल बात सत्य होनेसे 1017 में दुर्लभ राजाके मृत्यु होने सम्बन्धी, अन्धपरम्पराके अर्वाचीन इतिहासिक पुस्तकोंको आगे करके श्रीजिनेश्वर सूरिजीसे खरतर परम्पराकी मूल सत्य बातका निषेध करनेका आग्रह करनासो आत्मार्थियोंका काम नहीं है। ___ और श्रीजिनेश्वर सूरिजीसे खरतर गच्छकी परम्परा शुरू होने सम्बन्धी यहांपर प्रत्यक्ष प्रमाण भी दिखाता हूँ सो विवेक बुद्धि हृदयमें लाकरके विचार लो देखो-जैसे श्रीजगच्चन्द्र मूरिजीको 'तपा' विरुद मिला इससे इन महाराजके परम्परा वाले तप गच्छके कहलाने लगे और उन्हीं तप गच्छमें से वृद्धपौशालिये तथा लघुपौशालिये वगैरह अनुक्रमसे वर्तमान समय तकमें करण योगोंसे 13 / 14 भेद होगये सो 13 / 14 गट्टी तो प्रसिद्ध ही हैं। तैसे ही श्रीजिनेश्वर मूरिजीके परम्परावाले खरतर गच्छके कहलाने लगे सो उन्हीं खरतर गच्छमें से श्रीजिनवल्लभ मूरिजीके समयमें अनुमान 1170 के लगभगमें श्रीअभयदेव सूरिजीके अन्य दूसरे शिष्य की तरफसे 'मधुकर खरतर' नामा खरतर गच्छकी प्रथम शाखा निकलि और श्रीजिनदत्त सूरिजी महाराजके समय संवत् 1204 में श्रीजिनवल्लभ मूरिजीके शिष्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com