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[ ७३९ ] पहिले जैसा नहीं गिना जाता इसलिये यद्यपि पीछे तो चैत्यवासियोंको बहुत आचार्यादिकोंने हटाये थे परन्तु श्रीजिनेश्वर सूरिजीनेही पहिली वार प्रगटपने राज्यसभा, चैत्यवासियोंको हटाये थे इसलिये इन महाराजको विशेषता मानी जाती है
और पहिली वारका कार्य परम्परागतसे चिरकाल तक समरणीय रहता है इसलिये इन महाराजका पहिलाही कार्य खरतर विरुदका परम्परा करके आज तक समरणीय हो रहा है और
आगे होता रहेगा उसी कारणसे भी इन महाराजसे खरतर विरुद निषेध नहीं हो सकता है।
अथवा कितनेही ऐसा भी कहते हैं कि दुर्लभ राजाकी सभामें जब चैत्यवासियोंसे शास्त्रार्थ हुआ था तबसे ही सं० १०८० में मुविहित (खरतर) कहलाने लगे और राजाने इन महाराजको अपने नगरमें ठहरनेकी आज्ञा दी पीछे कालान्तरमें भीम राजाकी सभामें १०८४ में बड़े बड़े विद्वानोंकोशास्त्रार्थ में जीतनेसे “खरतर" विरुदको विशेष प्रसिद्ध हुई और इन महाराजका समुदायवाले खरतर गच्छके कहलाने लगे हैं सो ऐसा माना जावे तो भी दुर्लभ या भीम और १०८० या १०८४ का पाठान्तर ऊपरमें लिखा गया है सो इस बातसे भी श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे सुविहित (खरतर) गच्छकी उत्पत्ति होना परम्परा चलना तो अवश्यमेव मानना चाहिये जिसपर भी हठवादसे कुविकल्प करना सो अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे संसार बढ़नेका कारण है सो भवभीरू आत्मार्थी सत्यग्राही निष्पक्षपातियोंको करना उचित नहीं है और अन्ध परम्पराके कदाग्रहको छोड़कर उपरोक्त सत्य बातको ग्रहण करनाही अयकारी है।
और जैसे पूर्वाचायोंके दीक्षा, स्वर्गवास वगैरहके कालमानमें कितनेही वर्षाका मतभेद हो रहा है तथा कितनेही चरित्रों में, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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