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[ ६४ ] सीखाने ( कहने) से उनोंके नोकर लोगोंने श्रीजिनेश्वरसूरिजी को नगर छोड़कर बाहिर चले जानेका कहा तब इन महाराजने सोमेश्वर नामा राज्यपुरोहितकी सहायतासे श्रीदुर्लभराजाकी राज्यसभामें उन चैत्यवासियोंके साथ विवाद करके उन्होंको हटाये तब राजाने इन महाराजको खरतर याने साधुके वर्ताव-अतिशय विशेष सच्चे मार्गमें चलने वाले मुविहित अर्थात् शुद्धसाधु आप हैं ऐसा कहके अपने नगरमें ठहरनेकी आज्ञा दी। ___ तबसे महाराजका वहां रहना हुआ तथा अन्य भी शुद्ध संयमियोंका आना जाना शुरू होगया और चैत्यवासियोंकी पोल भी खुलती गई उन्होंकी माया फंदसे बहुत भव्य जीवों का छुटकाराई होगया और विधिमार्गका शुद्ध व्यवहारसे श्रीजिनामाकी आराधना करके आत्म कल्याणके रस्ते लगे और इन महाराजके उपदेशसे तथा शुद्धवर्तावके देखनेसे राजा भी महाराजका भक्त होगया और महाराजके पास धर्मशास्त्रोंका अध्ययन भी करने लगा और जीवदया वगैरह धर्म कार्यो में
और न्याय वर्तने लगा था और उपरोक्त कारणले ही तो इन महाराजके समुदाय वाले उस नगरमें शुद्ध संयमी मुविहित (खरतर) कहलाने लगे सो ही नामसे गच्छ प्रसिद्ध होगया इसीलिये श्रीगुणचन्द्र गणिजीने विक्रम संवत् ११३८ वर्षे पीवीरप्रभु का चरित्रकी रचना करी उसके अन्तकी प्रशस्तिने श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजसे खरतर (सुविहित ) साधुनोंकी सन्तती परम्परा जाता अर्थात् शुरू होनेका खुलासा पूर्वक लिखा हैसो सुविहित कहो अथवा खरतर कहो दोनों शब्द पर्यायवाची एकार्थ सूचक है और वसति वासी' याने निर्दोष मकान ठहरने वाले शुद्ध साधु कहो तो भी सुविहित-खरतरके तात्पर्य को प्रगट करनेवाला होनेसे तीनों एम एकावाले।
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