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होंगे, तब राजाने शुद्धाचार देखनेके लिये श्री जिनेश्वर सूरी को अपने पास बुलाये और चैत्यबाससियोंको भी बुलाये, जब श्रीजिनेश्वर सूरि राजाकी सभा में आए तब राजानें नमस्कार करा, तब गुरू महाराजने धर्मलाभ आशीर्वाद देके अपने बैठने योग्य स्थान में, कंबली बिछाके इरियावही पडिमके जमीनकी पडि डेहणा करके बैठें। तब राजाने विचारा कि शुद्ध आचार ऐसा ही होता है और चैत्यवासी जो आये सो राजाको आशीर वाद देके, इसी तरह विस्तरोंके ऊपर बैठ गये तब राजाने चैत्यवासियोंका विरुद्ध आचार देखके श्री जिनेस्वरसूरि महराजको साधुका आचार पूछा तब महाराज बोले आपका देवाधिष्टित ज्ञानका भण्डार है जिसमें सर्व मत स्वरूप निवेदक पुस्तक है उसमें से आपके पण्डितोंके पास एक या दो पुस्तक मंगवाइये तब राजाने भण्डारमेंसे पुस्तक मंगवाया सो पण्डितों के दशवै कालिक पुस्तक हाथ लगी। सो जब राजसभा में लेके आये । तबगुरू महाराजने कहा, इस पुस्तककों चैत्यवासियोंके हाथमें देके आप साधुका आचार सुनों, तब चैत्यवासी पुस्तक बाचने लगे, सो जहां बहुत साधुका आचार आने लगा वहांके पाठ वे छोड़नें लगे, तब गुरूमहाराज बोले, कि राजसभा में दिन को चौरी होती है, तब राजाने पूछा किस तरेसें, गुरूनें कहा, कि यहां इणोंनें साधुके आचारके कई पन्ने छोड़ दिये हैं, तब राजा बोला कि, आप वांचो। तब गुरूमहाराज नें कहा हमारे बांधने से ये लोग फिर कल्पित बात कहेंगे, इससे आपके बड़े पण्डितोंके पास ये पुस्तक वंचावो, तब राजाने अपने पण्डितोंके पास उस पुस्तक मेंसे साधुका आचार सुना, तब उसी आधारमुजिब श्रीजिनेश्वर
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