________________
७५ ] और रासमाला वगैरह गुजरातके इतिहासिक पुस्तकोंके आधारसे सं० १०७७ में मृत्यु होनेका ठहरानेका आग्रह किया सो भी बड़ी भूल है क्योंकि रासमालादि इतिहासिक पुस्तक किसी सर्वज्ञके कथन किये हुए तो नहीं हैं किन्तु अर्वाचीन जैन व अन्य कथानक इतिहासोंके आधारसे और चारण भाटादि. कोंकी परम्परागत कथा कहानियोंके आधारसे रासमालादि इतिहासिक ग्रन्थ लिखे गये हैं इसलिये इन पुस्तकोंकी सब बातोंपर निश्चय विश्वास करना उचित नहीं है और जो बात जैनधर्मके इतिहासिक वगैरह बहुत पुस्तकोंके प्रमाणानुसार होवे सो तो मानना चाहिये और जो बात बहुत शास्त्रोंके विरुद्ध होवे उसको भी माननेका आग्रह करना सो अभिनिवेशिक मिथ्यात्वका कारण बनता है, जैसे श्रीजिनेश्वरसूरिजीको संवत् १०८० में दुर्लभराजाने 'खरतर' विरुद दिया सो यह बात बहुत शास्त्रोंके प्रमाणोंसे सिद्ध है इसलिये चारण भाटादिकोंकी कथा कहानियां वगैरहों के आधारसे 'रासमाला' वगैरहमें सं० १०७१ में दुर्लभराजाकी मृत्यु लिखी उनको निश्चय मान लेना और बहुत शास्त्रानुसार तथा श्रीतप गच्छादिके पूर्वाचा. र्यों के सम्मत उपरोक्त विरुदका निषेध करना सो वर्तनानिक गच्छ कुदाग्रहकी अज्ञानताकी तुच्छ बुद्धि के सिवाय क्या होगा। ___ और यद्यपि रासमाला वगैरह गुजरातके इतिहासों में तथा इतिहासोंके ही आधारसे किसी अन्य जगह जैनोंके इतिहासिक पुस्तकों में भी १०७७ का लिखा देखने में आता है परन्तु इससे श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराजको चैत्य वासियोंके जितनेसे जो दुर्लभ राजाने सं० १०८० या १०८४ में खरतर विरुद दिया इसका निषेध नहीं बन सकता। बोंकि देखो ऐसे तो श्रीस्थूलभद्रजीके जन्म दीक्षा स्वर्ग गमनके वर्षों में व्यार२
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com