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[ ७२६ ] वर्षों का मतभेद देखा जाता है, श्रीनवांगी कृत्तिकारक नीअभ. यदेव सूरिजीके स्वर्गगमनमें ४।४ वर्षो का मतभेद देखा जाता है, तथा कलिकाल सर्वज्ञ विरुद धारक श्रीहेमचन्द्राचार्यजीके दीक्षा
और आचार्य पदमें भी ४४ वर्षों का मतभेद है और श्रीभद्रबाहु स्वामीजी, श्रीजिनेश्वरसूरिजी, श्रीमल्लवादीसूरिजी, तथा धनपाल पण्डित वगैरहके चरित्रों में भी पाठांतर मतभेद देखा जाता है और इसी तरह तपगच्छकी पहावलीमें भी यावत् श्रीहीरविजयसूरिजी तकको पाटानुपाटमें कोई कितने पाटपर और कोई कितने पाटपर, कोई कितने पाटपर मतांतरोंसे मानते हैं सो “सेन प्रश्न” देख लेना और इसी तरहसे 'सम्यक्त्वसल्योहार' वगैरह में लिखे मूजिब सूत्रों में भी पाठान्तर देखा जाता है और भी कितने ही चरित्रादिकों में और इतिहासिक बातों में मतभेद पाठान्तर देखने सुनने में आता है और श्रीउद्योतन मुरिजीसे ८४ गच्छकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें भी ३४ मतान्तर होगये हैं और ओसवाल पारवाल श्रीमाल श्रीश्रीमाल वगैरह जैनी प्रावकोंकी उत्पत्ति, गौत्र, कुल, स्थापनमें भी कितने ही वर्षों का मतभेद देखा जाता है इत्यादि। इन बातों में, सो यदि कोई हठवादी एकान्त एक बातको पकड़कर मतभेद पाठान्तरकी दूसरी बातका निषेध करनेके आग्रहमें पड़नेवालेको अभिनिवेशिक मिथ्यात्वीके सिवाय और क्या कहा जावेगा क्योंकि मतभेदकी बातोंका पूरा निर्णय तो श्रीज्ञानीजी महाराजोंके सिवाय वर्त्तमानने अल्पज हठवादी कदापि नहीं कर सकते हैं।
तैसे ही यदि संवत् १०८० पाठान्तरे १०८४ में दुर्लभ राजा विद्यमान होनेसे श्रीजिनेश्वर मूरिजीको खरतर विरुद दिया हो तो पा इतिहासिक पुस्तकों में १०७७ में मृत्युक लिखनेको देख कर सपरकी बातका निषेध करना योग्य है सो तो कदापि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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