________________
[ ७१८ ] मार्गशीर्ष शुदि पूर्णिमाने दिने, मूल नाम मानसिंह, दिक्षा बीकानेरमा संवत् १६२३ ना मार्गशीर्ष वदि ५, वाचकपद जेशलमेरुमां सं० १६४० माघ शुदि ५, आचार्यपद लाहोरमा सम्बत् १६४९ फाल्गुन शुदि २, सूरिपद वेनातटमा सम्वत् १६७०, मरण मेडतामा सम्वत् १६७४ पौष वदि १३ ने दिने थयं ।
६३, जिनराज-पिता शाह धर्मसी, माता घारलदेवी, गोत्र बोहित्थरा, जन्म सं० १६४७ वैशाख शुदि७, दिक्षा बीकानेरमां सं० १६५६ ना मार्गशीर्ष शुदि ३, दीक्षा नाम राजसमुद्र, वाचकपद सं० १६६८ अने सूरिपद मेडतामां सं० १६७४ ना फाल्गुन शुदि ने दिने मल्यु, तेमणे घणी प्रतिष्टाओ करी। दाखला तरीके सं० १६७५ ना वैशाख शुदि १२ ने शुक्रवारे शत्रजय ऊपर तेणे ऋषभ अने बीजा जिनोनी ५०१ मूर्तिओ नी प्रतिष्ठा करी, तेणे नैषधीय काव्य पर जैनराजी नामनी वृत्ति लखी अने बीजा ग्रन्धों लख्या छे; मरण पाहणमा सं० १६९० ना आषाढ़ शुदि हने दिने थयु। ___ सं० १६८६ मा आचार्यजिनसागर सूरिओ आठमो गच्छभेद नामे लध्वाचार्थिय खरतर शाखा उत्पन्न करी अने समय सुंदरना शिष्य हर्षनन्दने वधारी, (हर्षनन्दन ऋषिमंडल टीकाना कर्ता हता) ___ सं० १७०० मां रंगविजयगणीओ नवमो गच्छभेद नामे श्री रंगविजय खरतर शाखा उत्पन्न करी, अने आ शाखामांथी श्री सारोपाध्याये १० मो गच्छभेद नामे श्री सारीय खरतर शाखा उत्पन्न करी । एकादशस्तु हत्खरतर मूलगच्छ एवमेकादशभेदः खरतरगच्छः ॥ इत्यादि। ___ यह उपरोक्त पहावली मुंबईसे प्रगट होने वाला 'सनातन जैन' नामा मासिक पत्रके दूसरे पुस्तकके अंक १२ वें में सन्
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com