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१९०७ के जुलाई मासमें प्रकाशित हुई थी ( ऊपर में १०५ पृष्ठकी २२ वीं पंक्ति में १९०८ लिखा गया सो भूलसे समझना ) और हस्त लिखित प्रतोंसे अमेरिकन देशके बर्लिन नगरके डाकूर जहांनेस कलाह पी० एच० डी० ने अंग्रेजीमें पहावली लिखी थी उसको गुजराती भाषा में उपरोक्त मासिक पत्रमें प्रकाशित करी उसमें कितनी जगह नामोंका गोत्रोंका शब्दोंका रूपान्तर हो गया है सो अन्य पहावलियोंसे मिलान कर लेना और इसके बाद सन् १९०८ डीसेंबर फेब्रुआरीके अंक ५-६, पुस्तक तीसरे में तपगच्छकी पहावली प्रकाशित उपरोक्त मासिकमें हुई हैं ।
१४ चौदहवां और भी ऊपर मुजब ही खास न्यायांभोनिधिजी ( श्री आत्मारामजी ) ने अपने बनाये " जैनमत वृक्ष में" श्री खरतरगच्छ की पहावली में नीचे मुजब लिखा है यथा - श्री नेमिचन्द सूरिजी १, श्री उद्योतनसूरिजी २, श्री वर्द्धमान सूरिजी ३, श्री अष्टक वृत्ति पंचलिंगी प्रकरणकर्त्ता श्रीजिनेश्वरसूरिजी और इन्हींके गुरु भाई “बुद्धिसागर " व्याकरण कर्त्ता श्री बुद्धिसागर सूरिजी ४, संवेगरंगशाला कर्त्ता श्रीजिनचन्द्र सूरिजी ५, श्रीनवांगी वृत्तिकर्ता तथा श्रीस्थंभन पार्श्वनाथ प्रतिमा प्रगटकर्ता श्रीअभयदेवसूरिजी ६, पिंड विशुद्धि १, भवारिवारण २, वीरचरित्र २, संघपटक प्रमुख ग्रन्थकर्ता श्री जिनवल्लभ सूरिजी 9, संदेह दोलावली. गणधर सार्द्धशतककर्ता श्री जिनदत्त सूरिजी ८, इत्यादि इसी तरह से श्री जिनचन्द्र सूरिजी श्री जिनपति सूरिजी १० वगैरह वर्त्तमान समय तक खरतरगच्छ की पहावलीमें उपरोक्त पूर्वाचार्यों के नाम लिखे हैं सो छपा हुआ " जैनमत वृक्ष" प्रसिद्ध है । और भी इसी ही तरहसे अनेक ग्रन्थोंमें, अनेक पहावलियोंमें, अनेक प्रशस्तिओंमें, तथा अनेक ऐतिहासिक कथानक
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