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[ ६९ ] तरहसे उस दिनसे उन चैत्यवासियोंकी परंपरावाले 'कवले' कहलाये और इन महाराजके परंपरा वाले 'खरतर' कहलाये इसलिये श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजके शिष्य श्रीजिनचन्द्रसरिजी तथा श्रीनवांगीत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिजी श्रीजिनवल्लभसरिजी श्रीजिनदत्तसरिजी वगैरह शासन प्रभावक महाराज सबी श्रीखरतरगच्छकी परंपरामें हुए हैं सो शास्त्रोंके प्रमाणोंसे
और युक्तियोंके अनुसार प्रगटपने स्वयं सिद्ध हैं तथा ऐसेही श्रीतपगच्छादिके पूर्वाचार्यों ने भी अपने बनाये ग्रन्थों में खुलासा पूर्वक लिखा है तिसपर भी न्यायांभोनिधिजीने अपने पूर्वज पुरुषोंके कथनको और शास्त्र प्रमाणानुसार सत्य बातको उत्थापन करके श्रीजिनेश्वरसरिजीको खरतर विरुद नहीं मिलनेका ठहरा करके श्रीनवांगीत्तिकारक श्रोअभयदेवसूरिजी खरतरगच्छमें नहीं हुए ऐसा कहते हुए व्यर्थ द्वेष बुद्धिसे प्रत्यक्ष मिथ्या जूठे आलंबनोंसे शासन प्रभावक परमोपकारी श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज पर कितनीक बातोंके झूठे दोष लगाके इन महाराजसे सम्बत् १२०४ में खरतरगच्छकी उत्पति होनेका “जैन सिद्धांत समाचारी” परन्तु वास्तव में “उत्सूत्रोंकी कुयुक्तियोंको अन्धखाड" नामक पुस्तकमें तथा 'जैनतत्वादर्श' वगैरहोंमें लिखने वाले (न्यायांभोनिधिजी वगैरहों ) ने अपने महाव्रतका भंग करके मिथ्या भाषणके लेखोंसे भोले जीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरकर अपने और दूसरे भद्र जीवोंके संसार बढ़ानेका कारण करते हुए आपसमें कदाग्रहका झगड़ा बढ़ानेका कारण किया जिसका निवारण करनेके लिये तथा ऊपरकी बात पाठकगणको विशेष निःसन्देह होनेके लिये यहां पर थोड़ेसे शास्त्रोंके प्रमाणों सहित, प्रत्यक्ष प्रमाणों पूर्वक युक्ति के साथ संक्षिप्तसे निर्णय करके दिखाता हूं।
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