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और विनयविजयजी वगैरहोंने सुबोधिकादिकों में अधिक मास निषेध सम्बन्धी पर्युषणा विषयिककी तरह छ कल्याणक निषेध सम्बन्धी भी धर्म धूर्ताईकी ठगाईसे उत्सूत्रभाषणोंसे और अभिनिवेशिक मिथ्यात्वकी कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंको अपने फन्दमें फसाने के लिये ऐसी भ्रमजाल फैलाई है कि जिसमें अल्पज्ञ सामान्य जीव फसे उसमें तो कोई आश्चर्य नहीं है परन्तु न्यायांभोनिधिको उपाधि धारण करनेवाले आत्मा रामजी जैसे वर्तमानिक प्रसिद्ध विद्वान् हो करके भी उन्होंकी भ्रमजालमें फस गये और इन्होंकाही अनुकरण करके श्रीखरतर गच्छके पूर्वाचार्यकृत शास्त्र पाठका सद्गुरुसे विवेक बुद्धिपूर्वक तात्पर्यार्थको समझे बिना श्रीजिनवल्लभसूरिजी महाराजको छठे कल्याणक नवीन प्ररूपण करनेका वथाही जूठा दूषण लगाकर निज परको संसार सद्धिका और दुर्लभ बोधिपनेका हेतु करके भोलेजीवोंको अपने कदाग्रहमें गेरनेका “जैन सिद्धान्त समाचारी" नामक पुस्तकमें परिमम करने में कुछ कम नहीं किया है और वर्तमानमें श्रीपयुषणा पर्वके धर्म ध्यानके दिनोंमें सुबोधिका बंचाकर छ कल्याणक निषेध सम्बन्धी हरवर्षे आपसमेंही खण्डन मण्डनके झगड़े को विशेषतासे आत्मारामजीनेही प्रचलित किया है और वलभविजयजीने भी सन् १९०९ के नवेम्बर मासकी ७ वी तारीखके जैन पत्रके ३० वां अङ्कमें “जैन सिद्धान्त समाचारी" की पुस्तककोही आगे करके छ कल्याणक निषेध सम्बन्धी अपने मन्तव्यको पुष्टकिया इसलिये अब मेरेकोभी आत्मारामजी कृत जैन सिद्वान्तसमाचारीके छ कल्याणक निर्वध सम्बन्धी लेखकी समीक्षा करनेका अवसर प्रान हुआ है सो करके पाठक
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