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अब उपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकगणको दिखाता हूं जिसमें प्रथम तो मेरा यहां इतना ही कहना है कि-श्रीआत्मारामजीने अपने न्यायांभोनिधिके विशेषणको लजाने का भय न रखकर श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिकी वृत्तिमें टीकाकारने सब तरह की खुलासा के साथ व्याख्या करी थी जिसके आगे पीछेके सम्बन्धवाले पूर्वापरके पाठको छोड़कर प्रत्यक्ष मायाचारी पूर्वक उत्सूत्र भाषण रूप टीकाके अधूरे पाठसे वृत्तिकारके विरुद्धार्थमें भोले जीवोंको भ्रम में गेरनेका कारण किया है इस लिये पहिले वृत्तिका सम्पूर्ण पाठ यहां दिखाना उचित समझ करके श्रीमुर्शिदाबाद अजीमगञ्ज निवासी राय बहादुर धनपति सिंहके आगम संग्रह में श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्ति सहित छपकर प्रसिद्ध हुई है उसमें का पाठ यहां दिखाता हूं तथाहि श्रीहीर विजयसूरि पहथर श्रीविजयसेनसूरि शिष्य श्रीशांतिचन्द्रगणी विरचित श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ तथा
च तत्पाठ :――
अथ जन्म कल्याणकादि नक्षत्राणि आह । उसभेण मित्यादि । ऋषभो - अर्हन् पञ्चसु च्यवन जन्म राज्याभिषेक दीक्षा ज्ञान लक्षणेषु वस्तुषु उतराषाढा नक्षत्र' चन्द्र ेण भुज्यमानं यस्य स तथा अभिन्निक्षत्र षष्ठ निर्वाण लक्षणे वस्तुनि यस्य यद्वा अभिजित नक्षत्र े षष्ठ ं निवाण लक्षणं वस्तु यस्यस तथा उक्तमेवार्थ भाव यति तद्यथा उत्तराषाढाभिर्युते चंद्र तिशेषः सूत्र वहु वचनं प्राकृत शैल्या एवमग्रपि च्युतः सर्वार्थ सिद्धनात्री महाविमानानिर्गत इत्यर्थः, च्युत्वा गर्भे व्युत्क्रांतः मरुदेवायाः कुक्षाववतीर्ण वानित्यर्थः १ जातो गर्भवासान्निष्क्रांतः २ राज्याभिषेकं प्राप्तः ३ मुण्डोभूत्वा आगारं मुक्ता अनगारितां साधुतां प्रव्रजितः प्राप्त इत्यर्थः पंचमी चात्रश्य लोपजन्या ४ अनंतरं यावत केवलं
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