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रूपी पीलियेके रोगमें अस्त चित्तवाले हो करके पूर्वापरकी विचार शून्यतासे विचारे भद्र जीवोंको अपने जैसे भ्रममें गेर. नेके लिये वृथा ही परिश्रम करके अपनी हांसी कराई है क्योंकि राज्याभिषेक सम्बन्धी श्रीजम्बूद्वीप पन्नत्तिके पाठमें हमको तो क्या परन्तु कोई भी विवेकी आत्मार्थी तत्वज्ञ आज्ञा माराधक को किसी तरहकी भ्रांति नहीं पड़ सकती है क्योंकि वहां तो यदि उसी नक्षत्र, वंश स्थापना, कला प्रवर्ताना, विवाहाका होना, वगैरह कार्य भी होते तो प्रथम कार्यको प्रवर्तनाके हेतु तथा प्रथम तीर्थंकरको इन्द्रकृत भक्तिके कार्य रूप वस्तुओंकी यादगिरिके लिये उस प्रसङ्गमें सूत्रकार १० नक्षत्र भी गिना देते परन्तु सबी कल्याणकपमेमें नहीं गिने जा सकते और राज्याभिषेकादिरपरके कार्यों को कल्याणकपना नहीं होनेसे उसकी जघन्य मध्यम उत्कृष्ट वाचना पूर्वक उन्होंके तिथि पक्ष मासादिकोंकी व्याख्या भी सूत्रकारने नहीं करी और श्रीकल्पसूत्रादिमें विशेष रूपसे राज्याभिषेक बिना पांच कल्याणकोंकी व्याख्यावाला पाठ मौजद है और श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिके उपरोक्त पाठकी व्याख्याओंमें न्यायांभोनिधिजीके ही परम पूज्य श्रीहीरविजय सूरिजीकृत वृत्ति तथा उपरमें ही छापा हुआ पाठ वगैरहों में खुलासा व्याख्यान करके किसी तरह की न्यायांभोनिधि नामधारक वगैरह किसीको भ्रांति पड़नेके कारणकोही जड़मूलसे नष्ट कर दिया है तथापि न्यायांभोनिधिकी उपाधि धारण करनेवाले श्रीमद्विजया. मन्द सूरिजी बनकर आत्मारामजीने जान बूझ कर बिना भ्रांतिवाले पाठको शास्त्रकारोंके विरुद्ध होकरके तथा मागे पीछेके पाठको चौरकी तरह छुपाकर बाल जीवोंके भागे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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