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[ ६००] और राज्याभिषेकका पाठ तो मास पक्षादिककी व्याख्या रहित सिर्फ नाम मात्र ही एक जगह पर श्रीजन्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में है तथा उसकी व्याख्यामोमें कल्याणक पनेका अभाव खुलासे लिख दिया है परन्तु श्रीमहावीरस्वामीके गर्भापहारका पाठ तो मास पक्षादि सहित खुलासाके साथ सूत्र चूर्णि वृत्ति चरित्र प्रकरणादि अनेक शास्त्रों में प्रगटपने बहुत जगहपर मौजूद है और उसको कल्याणकपमा खुलासा पूर्वक लिखा हुआ है इसलिये गच्छ कदाग्रहके वृथा हठवाद से गर्भापहारके पाठकी तरह उसीके सदृश राज्याभिषेकका पाठको ठहराकर गर्भापहारका निषेध करने के लिये राज्या. भिषेकका दृष्टान्त लिखना भी न्यायांभोनिधिजीको अन्याय कारक होनेसे सर्वथा अनुचित है इस बातको भी विवेकी जन स्वयं विचार सर्केगे:
अब पाठक वर्ग मेरा यहां इतना ही कहना है कि न्या. यांभोनिधिजीने दूसरोंकी ब्रांति और आग्रह दोनो ही दूर करने सम्बन्धी प्रत्यक्ष मिथ्या और माया वत्ति युक्त लिख करके श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रके पाठको तथा उसकी वत्तिके अधूरे पाठको दिखानेका परिश्रम करते हुए बालजीवोंके आगे अपनी बात जमाना चाहा परन्तु अन्तर मिथ्यात्वके उदयसे खास आप पीलियेके रोगीवत् निजमें ही भ्रांतिमें फंस गये और वृत्तिकारके विरुद्धार्थ, वृथा ही झूठा आग्रह करके दृष्टि रागियोंको मिथ्यात्वमें गेरनेका कारण किया और राज्याभिषेकके तथा गर्भापहारके मतलबको निष्पक्षपात हो करके विवेक बुद्धि पूर्वक गुरुगम्यतासे समझे बिना वस्तु वस्तु पुका. रके गर्भापहारके दूसरे च्यवन कल्यणकके निषेध करनेके लिये बिना ही प्रयोजन राज्याभिषेकका सहारा लिया और गच्छ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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