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[20] प्रकाश करी सो बात तो पास्त प्रसिद्ध है परन्तु यहां फिर भी अबी पोड़े समयका प्रीतप गच्छके पूर्वाचार्य तथा मीहीरविजयसूरिजी और इन महाराजके सन्तानीयों सम्बन्धी भीतपगच्छका ही प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाता हूसो देखो कि भीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महाराजोंकी आशानुसार अनेक शास्त्रोंके प्रत्यक्ष प्रमाणों मुजब श्रीतपगच्छ नायक सुप्रसिद्ध विद्वान् श्रीदेवेन्द्रसूरिजी तथा श्रीकुलमंडन. सूरिजो और रत्नशेखरसूरिजी वगैरह महाराजोंने अपने बनाये शास्त्रों में सामायिकाधिकार प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये पीछे इरियावही का प्रतिक्रमण करना कहा है तिसपर भी उत्सूत्रप्ररूपक धर्मसागरजीने तत्वतरङ्गिणि, प्रवचनपरीक्षा, इरियावहीषत्रिंशिकादि, अपने कदाग्रही अन्यों उन महाराजोंके कथनका उलटा अर्थ करके अनेक शास्त्रोंके (प्रथम करेमिभंते सम्बन्धो) प्रमाणोंका उत्थापन पूर्वक शास्त्र प्रमाणशून्य कुयुक्तियोंके विकल्पोंसे मोमहानिशोथ, दशवकालिकादि, शास्त्रों के पाठोंको मायाचारीसे अधूरे अधूरे लिखके फिर उसका भी अपनी कल्पना मुजक झूठा अर्थ करके सामायिक प्रथम इरियावही बड़े जोरशोरसे लिखी और अनेक शास्त्रोंके प्रमाणपूर्वक प्रथम करेमिभंते लिखने वालोंपर तथा उसबातको मान्य करने वालोंपर अनेक तरहके आक्षेप वाले अति कटुक वचन लिखे उसीमुजब ही मोहीरविजयसूरिजी तथा मोविजयसेनसूरिजी वगैरहोंने तो उत्सूत्रसे जिनाता भड़का भय न करके प्रथम करेमिभंतेका निषेध पूर्वक प्रथम इरियावही स्थापित करते रहे परन्तु इन्होंके सन्तानीय उपा. ध्यायजी श्रीमानविजयजोने तथा सुप्रसिद्धविद्वान् न्यायविशारद मोमद्यशोविजयजीने तो अपने गुरु तथा गच्छके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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