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[१५] और वहां बीतीसमगर जब श्रीजिनवमममूरिजी महाराजने चौमासा किया उस समय भी चैत्यवासियोंकी रात्रिस्नानादि अविधिकी बातोंका निवारण करके चैत्यमें यत्नापूर्वक दिनमें स्मात्र करने तथा पत्यकी ८४ आशातना निवारण करनी और विधिसे प्रवेश करना तथा छठे कल्याणकका मानना इत्यादि शास्त्रानुसार विधिमार्गको बातोंको विशेषता प्रकाशित करो और चैत्यवासियोंको कल्पित अविधिको बातोंकी सब पोल खोलने लगे तब तो वे चैत्यवासी लोग इन महाराजपर बहुत वैराजी हुए और विरुद्धताका कथन करने लगे याने इस पञ्चमकालमें चैत्यमें रहना उचित है तथा चैत्यादिककी संभालके लिये द्रव्य भी रखना चाहिये और आश्चर्यरूपहोनेसे छठे कल्याणककों नहीं मानना इत्यादि बातोंको शास्त्रप्रमाण बिना ही क्युतियों करके कथन करने लगे तब भी इन महाराजने तो निजमेही अपनी विद्वत्ताको हिम्मतसे चैत्यवासीयोंकी कल्पित बातोंका निषेध करके शास्त्रों के दृढ प्रमाणों पूर्वक चैत्य वास निषेध, षट कल्याणक स्थापन वगैरह बातोंको सब लोगोंके सामने विस्तारसे प्रकाशित करी और बोलने लगे कि देखो बड़े आश्चर्यकी बात है कि श्रीजिनेश्वर भगवान्के मन्दिरको चौराशी आशातना निवारण करके उपयोग सहित यत्नासे चैत्य वन्दनादि कार्य विशेषतासे मर्यादा युक्त चैत्यमें जानेकी और कार्य उपरांत वहां ठहरनेकी मनाई वगैरह बातोंकी भाष्य चूर्यादि शास्त्रों में प्रगटपने विधि कथन करी हुई है तिसपर भी ये चैत्यवासीलोग उसका विचार छोड़कर सर्वथा प्रकारसे चैत्यमें निवास करने वगैरह प्रत्यक्ष अविधि करके अनुचित कार्य करते है तथा श्रीकल्प सूत्रादि मूल शास्त्रों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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