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[ ६२० ] मिथ्या आग्रहकी जबराई नहीं कहसकते हैं इसीतरहसे श्रीजिनवल्लभसूरिजीनेभी शास्त्राप्रमाणों सहित अपने कथनकी सत्यताके कारणसे तथा अपनी विद्वत्ताकी हिम्मत बहादुरी और निज प्रकृति शरीर स्वभावकी चेष्टासे चैत्यवासियोंकी उत्सूत्र प्ररूपणाका कल्पित मार्गको हटा करके श्रीजिनाज्ञा नुसार सत्य बातको प्रगट करनेके लिये खम्भा ठोकके कथन किया सो तो चैत्यवास रात्रिस्नानादि अविधिकी बातोंका निवारण करनेके लिये और प्रभातसे दिनमें विधिपूर्वक यत्नासे नात्र महोत्सवादि करना और चैत्य वंदनादिके लिये जाना वगैरह शास्त्रानुसार विधि नार्गकी बातोंको प्रकाशित करनेके लिये खूब ही अच्छी तरह से सबके सामने कथन किया परन्तु झूठे आदमी सत्यवादीके सामने नहीं आ सकते हैं उसी तरह कोई भी उन चैत्यवासियोंमेंसे महाराजके सामने आकर चैत्यमें रहने वगैरह अपनी बातोंको स्थापन करनेके लिये कथन नहीं करसका उसीसे बहुत भव्यजीवोंको चैत्यवासियोंके मायाफन्दसे छुटनेका कारण होकर श्रीजिनाज्ञामें प्रवर्तमान होनेसे बड़ा लामका कार्य (इन महाराजका कथन) होगया जिसमें अनन्त लाभके कारणका उपकार सम्बन्धी विचारको तो भूलगये और चैत्यवासियोंकी अविधिमें पड़कर भगवान्की आज्ञा भङ्ग तथा मन्दिरजीमें विराजमान श्रीजिनेश्वर भगवान्की प्रतिमाजीकी आशातना करके और शिथिलाचारी उत्सूत्रप्ररूपक चैत्यवासियोंको शुद्ध उपदेश देनेवाले संयमी गुरु मानने वगैरह कारणोंसे संसाररद्धि सम्यक्त्वका नाश दुर्लभ बोधिकी प्राप्ति भद्रजीवोंको होवे वैसे वर्तावके मिथ्यात्वको इन महाराजने हटाया और श्रीजिनाज्ञानुसार शास्त्र प्रमाण मुजब विधिमार्गको सत्य बातोंको प्रकाशित करो जिसके पूर्वापरके सब पाठको
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