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वगैरह शास्त्रोंके पाठ प्रसिद्ध हैं और चैत्यवासी लोग भी श्रीकल्पसूत्रको तो हरवर्षे वांचते थे तथा कितनेही विद्वान् चैत्यवासी आचार्यादि अन्य भी जैनशास्त्रोंके तो पूरे पूरे ज्ञाता सुनने में आते हैं इसलिये आपका और टीका कारका उपरोक्त लिखना मिथ्या मालूम होता है ।
समाधान - भोदेवानुप्रिय ? अतोव गहनाशययुक्त नयगर्भित अपेक्षा संबंधी श्रीजैनप्रवचनको शैलोको गुरु गम्यतासे या विवेक बुद्धिसे जाने बिना, उपरके मेरे लेखका तथा ढोकाकार के वाक्यका अभिप्रायको समझे बिना शङ्का करके बनने दोनों लेखोंको अपनी अज्ञानता से मिथ्या कह दिये परन्तु ऊपर दोनों लेख सत्य होनेसे मिथ्या नहीं हो सकते हैं क्योंकि देते, वैसे-श्रं वीरविजयजने श्री सिद्धाचलजी के स्तवन में " को डिसहस भवपातिक त्रुटे शेत्रुंजय साहामो डग भरिये, विमल गिरि जात्रा नवाया करिये" तथा " पापी अपव्य नजरे न देखे, हिंसक पण उद्धरिये, विमल गिरि जात्रा नवाणु, करिये” सो इन दोनों गाथाओंमें श्रीसिद्धाचल जीके सामने जाने वालेके हजारकोडो भवोंके पाप कटते हैं और पापात्माप्राणी तथा अभव्य प्राणी इस तीर्थको नजर ( आंख ) सेभी नहीं देखसके, इस तरह कथन किया परन्तु वहां तो श्री पालीताणादिमें रहनेवाले भाट तथा डोली वाले वगैरह आजीविकादि अपने इस लोकके स्वार्थकेलिये (तीर्थकी आशा तनासे दीर्घ संसारका कारण करते हुए भी) श्रीसिद्धाचलजीके पहाड़ ऊपर बहुत आदमियोंको जाते हुए अपने पत्र कोई प्रत्यक्षपने देखते हैं तो क्या श्रीवीरविजयजीके पढ्ने मुजब उनलोगोंके हजारकोडी भवोंके पापकटनेका आपलोग मानोंगे सोतो नहीं, और इस तीर्थके आसपास के ग्राम नगरों में रहनेवाले कसाई मले व्यादि सभी हिंसक पापी जीव, इस तीर्थको अपनी
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