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[ ६२१ ] लिखना तो दूर रहा परन्तु विशेष मायाचारी करके चैत्यवासियों सम्बंधी विषयको छुपा करके "खम्भा ठोंकके छठे कल्याणककी प्ररूपणा करी" इसतरहसे लिखकर अपने हठवादसे नवीन छठे कल्याणककी उत्सूत्रप्ररूपणा करनेका बालजीवोंको दिखाया सो निष्केवल अन्तरके अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे निजपरके आत्मकल्याणमें विघ्नरूप सम्यक्त्वको नष्ट करनेवाला वृथा ही गाढ़ मिथ्यात्वका भ्रम भद्रजीवोंके दिलमें गेरकर संसार भ्रमणका कारण किया है क्योंकि"प्रकर्षेणेद मित्थमेव मवति योऽत्रार्थ सहिष्नुः सवावदीवितिस्कंधास्फालन पूर्वकं साधितः सकल प्रत्यक्ष प्रकाशितः ।" इन अक्षरोंका “अतिशय करके यह छठा कल्याणक ही है जो इस बातमें सहन न कर सकता होवे सो अतिशय करके कथन करो ऐसे कथनके साथ अपने स्कन्धोंको आस्फालनपूर्वक छठा कल्याणक कथन किया है अर्थात् अपनी भुजासे खम्भा ठोंकके छठे कल्याणककी प्ररूपणा करी सर्व लोकोंके समक्ष कथन किया ।" यह भावार्थ न्यायांभोनिधिजीने लिखके नवीन छठे कल्याणककी प्ररूपणा करनेका ठहराया सो तो अपनी विद्वत्ताकी चातुराईको मायारत्तिसे वृथा ही लजाया है क्योंकि उपरोक्त अक्षरोंका यह भावार्थ नहीं बन... सकता किन्तु चैत्यवास निषेधादि विषय हमने ऊपरमें लिखे हैं वैसा होता है इसलिये केवल छठे कल्याणककी प्ररूपणा करनेके लिये खम्भे ठोंकके कथन नहीं किया किन्तु चैत्यवास निवारणादि पूर्वमें विषय दिखाये हैं उन्हीं सबोंका कथन करके शिथिलाचारी जैनीसाधुकावेष धारण करनेवालांकी कल्पित अविधि और सत्सूत्र प्ररूपणा हटानेके लिये खम्भा ठोंकने पूर्वक उपरोक्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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