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[६९४ ] सो वे लोग निज स्वार्थ सिद्धि के लिये अज्ञानतासे उत्सूत्रप्ररूपणा करते हुए चैत्यमें रहना तथा रात्रिको स्नात्र महोत्सव, प्रतिष्ठादि करना और रात्रिको साधु साध्वी प्रावक माविका. ओंको मन्दिर में माना वगैरह अनेक बाते शास्त्रमर्यादा विरुद्ध अपनी कल्पित कुयुक्तियों के सहारीसे प्रवर्तमान करते थे और ४२ दोष वर्जित मुनिको गौचरी करना तथा सर्वथा परिग्रह रहित रहना और अधिक मास तथा भी वीरममुके छ कल्याणकादिको मानना वगैरह शास्त्रों में कथन करी हुई सत्यबातोंकों उत्थापन करके श्रीजिनाजा विरुद्ध प्ररूपणासे भद्रजीवोंके दिलने अनेक तरह के संदेह उत्पन्न होवे वैसो कुयुक्तियों करके उनहोंको अपने भ्रमचक्रमें फंसाते हुए मिथ्यात्वकी सुद्धिकरते थे, तब वहां विशेष डाभका कारण जानकर उसदेशमें भीजिनवमसूरिजी महाराजनेविहार किया सो बड़े परिममके साथ श्रीकालिकाचार्यजीको तरह मरणास उपसर्गका भी भय न करके उन चैत्यवासियों के अनेक तरहके उपद्रवोंको भी सहन करते हुए अपनी हीमत बहादुरीसे चैत्यवासियोंके मन कल्पनाकी अविधिमार्गको बातोंके कदानहरूपी मिथ्यात्वका नाश करके शास्त्रानुसार विधिमार्गको सत्य बातोंको प्रगट करने में भव्य जीवोंका उपकाररूपी अन्तर करुणाकी प्रबलतासे किसीकी साह्यता बिना परन्तु मीदेव गुरुके (मोजिनेखर भगवान् के तपा पूर्वाचार्यों के) कपन किये हुए शास्त्रोंके प्रमाणोंके माधार
त्यने रहना वगैरह शास्त्रविरुद्ध उपरोक्त बातोंका निषेध करने पूर्वक चैत्यकी विधिको भौर श्रीवीरप्रभु के छ कल्याणकादि शास्त्रानुसार घोजिनाजा मुजब सत्य बातोंको भव्यजीवोंको दियाय, उपादेयका, परिधानो लिये मजपित री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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