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और पहाडीके जनक शाही प्रमाणों मुजब तपा युक्तियों के अनुसार श्रीमहावीर खामीके छ कल्याणक प्रत्यक्ष पने सिद्ध है इसलिये मोशान्तिचन्द्रगणिजीने छ कल्याणक डिखे सो किसीकी संगतसे भूल करी ऐसा भी कहना अनेक शास्त्रोंके पाठोंका उत्थापनरूपी उत्सूत्र होता है इसलिये इन वृत्तिकारने छ कल्याणक लिखे जिसने लिखनेवालेको किसी तरहका कोई दोष नहीं लग सकता है क्योंकि देखो बास वत्तिकारने मिजमें ही “न च प्रस्तुत व्याख्यानस्यानागमिकरवं भावनियं आचारांग भावनाध्ययने मीवीर कल्याणक सूत्रस्यैवमेव व्याख्यात स्वात्" इन अक्षरोंको लिख करके अपनो व्याख्या मागमानुसार सिद्ध कर दी और मीमाधारांगजी सूत्रके भावना अध्ययन अर्थात् चूलिका अध्ययनके मूलसूत्रका पाठके प्रमाणसे पीवीर प्रभुके छ कल्याणक दिखाये हैं तथा श्रीकल्प सूत्रके पाठसे राज्याभिषेक बिना श्रीऋषभदेवजीके पांच कल्याण कोंका पाठ पूर्वक खुलासा करदिया इसलिये इन वत्तिकारकी उपर्युक्त व्याख्या सम्बन्धी किसी तरहका आक्षेप कोई गच्छममत्वी करेगा तो विवेकी विद्वानोंसे वथाही हास्य का पात्र बनेगा इसको भी तत्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेंगे।
तथा और भी पाठकगणको विशेष निःसन्देह होनेके लिये न्यायांभोनिधिजीके परम पूज्य व धर्मसागरजीका अनुकरण करनेवाले सुप्रसिद्ध पीहीरविजयसूरिजीकृत भीजम्बूद्वीप प्राप्ति वृत्तिका पाठ यहां दिखाता हूं यथा,
अथ श्री ऋषभस्य पंच कल्याणकानि राज्याभिषेक श्चेति षट् वस्तूनि यस्मिनक्षत्र जातानि तानिदर्शयति ॥ उसमेणमित्यादि। ऋषभो णमित्यलङ्कारे, पंचेति पंचमु च्यवन, जम्म, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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