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[ ] सिवाय और वा सार निकाला होगा जिसको तो विशेषता तत्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेंगे।
और (पंच हत्युत्तरे होत्या साइणा परिनिव्वुए, यही छ वस्तु वांचके आपको भ्रांति हुई है) इत्यादि लिखकर श्रीमहावीर स्वामीके चरित्र सम्बन्धी उपरोक्त मीकल्पसूत्रके पाठके अर्थमें सर्वथा कल्याणकोंका अभाव पूर्वक छ वस्तु ठहराकर, छ कल्याणकोंकी भांति होनेका तथा उपरका भ्रांति वाला पाठ देखकर आग्रहके वस होनेका न्यायांभोनिधिजीने ठहराया अब इस लेखपर मेरा इतना ही कहना है कि-श्रीमहावीर स्वामोके चरित्रकी आदिमें ही कल्याणकाधिकारे छ कल्याणको सम्बन्धी अनेक शास्त्रों में उपरके पाठ मूजब ही पाठ है तथा उपरके पाठकी ही जघन्य मध्यम उत्कृष्ट वाचना पूर्वक खास सूत्रकारोंनेही मूल सूत्रों के पाठोंमें प्रगटपने व्याख्या करी है तथा उपरोक्त पाठोंकी व्याख्याओंमें टीकाकारोंने भी खुलासासे छ कल्याणक लिखे हैं तथा 'वस्तु' 'स्थान' शब्द भी कल्याणक अर्थके पर्याय वाचीपने करके एकार्थ वाले हैं और गर्भापहारको दूसरे च्यवन कल्याणककी प्राप्ति होनेसे त्रिशला माताने चौदह स्वप्न आकाशसे उतरते और अपने मुखमें प्रवेश करते हुए देखे तथा नव महिने और ॥ दिनमें तुम्हारे कुलमें वृषभ समान, राजराज्येखर पूज्य, त्रिजगतपति कुलदीपक पुत्र होगा इत्यादि स्वप्न पाठकों के कथनका पाठ मूल सूत्र में और उसकी अनेक टीकाओंमें विस्तार पूर्वक वर्गनके साथ प्रसिद्ध है इसलिये श्री महावीरस्वामीके छ कल्या. णक शास्त्रानुसार तथा युक्ति युक्त सिद्ध होनेसे इन्होंको मान्य करने में हमको तो था परन्तु किसी भी विवेकी सत्यवाही आत्मार्थी पुरुषको किसी तरहकी भ्रांति ही नहीं हो सकती
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