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[५ ] तीर्थेशका राज्याभिषेक इन्द्रने किया सो उसी नक्षत्र में होनेके कारण श्रीआदिनाथजीके च्यवन जन्मादि कल्याणकोंके साथ उसीकोभी सूत्रकारने लिख दिया है परन्तु राज्याभिषेक कल्याणक नहीं हो सकता है इस तरह का खुलासा भीखरतर गच्छके तथा श्रीतपगच्छादिके सबी टीकाकारोंने पांचो व्याख्याओंमें लिखा है तिसपर भी भीआत्मारामजी न्यायके समुद्र, शुद्ध प्ररूपक कहलाते हुए भी श्रीमहावीरस्वामीके छठे कल्याणकके द्वषसे उसीका निषेध करने के लिये वस्तुके बहाने श्रीआदिनाथजीके भी च्यवन जन्मादि पांचों कल्याणकोंको निषेध करनेका प्रत्यक्ष ही इतना बड़ा भारी उत्सूत्र भाषण रूप लिखते संसार वद्धिका कुछ भी भय न किया॥हा अतीव खेद! देखिये ढढकमतका अपना पूर्वका स्वभाव न जानेकेकारण इतनेबड़े प्रसिद्धविद्वान् तथा न्यायांभोनिधि और भीमद्विजयानन्दमूरिका नाम धारक हो करके भी निजपरके आत्म कल्याण निमित्त शुद्ध प्ररूपणा करनेके बदले ऐसा अनर्थ कारक उत्सूत्र भाषण करके अपनी आत्माके कल्याणमें विघ्नरूप और संसार वृद्धिके हेतु भूत हो गये, अपना आत्म कल्याण तो न होने दिया परन्तु दूसरे भद्र जीवोंके भी आत्म कल्याणमें विघ्नरूप होकर आडम्बरसे विचारे भोले जीवोंको अपनी भ्रमाजलमें फंसानेके लिये उद्यम करने में कुछ कम न किया खैर;-देखो यह बात तो प्रसिद्धही है कि-एक बातका उत्थापन करनेसे उसी संबन्धी बहुत शास्त्रोंके पाठके विपरीत अर्थ करने पड़ते हैं तथा उसीकी पुष्टि करने के लिये अनेक बातें उत्थापन करके अनेक जगह अनेक शास्त्रों के पाठोंको भी उत्थापन करके वा उन्होंके विपरीत अर्थ करके अनेक तरह की कुयुक्तियों पूर्वक उत्सूत्र भाषणोंसे महान् अनर्थ करते हुए निजपरके दुर्मभबोधि पनेका कारण
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