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ढूंढिये तेरहन्थियोंकी तरह करना पड़ता है, अर्थात्-जैसे ढूंढिये और तेरहपन्थी लोगोंने श्रीजिनमूर्ति के दर्शन पूजा तथा भक्तिके कारण कार्य भावसे अनन्त लाभ होने के मतलबको समझे बिना उसका निषेध किया तब अपना कल्पित कदाब्रह जमानेके लिये उसके साथ अनेक बातें उत्थापन करनी पड़ी तथा अनेक शास्त्रोंके अर्थ भी अपनी कल्पना सुजब विपरीत करने पड़ और पंचांगी के हजारों शास्त्रोंकों जड़ मूलसे अमान्य ठहरा करके श्रीतीर्थकर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यों की और एकावतारी युग प्रधान प्रभावक पुरुषोंकी बड़ी अवज्ञा पूर्वक मिन्दा करनेका बड़ा भारी महान् अनर्थ करते हुए मिथ्यात्व बढ़ानेवाली अनेक तरहकी. कुयुक्तियोंके विकल्प करके भोले जीवोंको अपने भ्रमचक्रमें गेरनेका उद्यम करके निजपरके मनुष्य जन्मको वृथा गमाकर विशेषतासे संसार भ्रमण और दुर्श भबोधिका कारण किया तथा करते हैं, तैसे ही श्री महावीर स्वामीके छठे कल्याणकको मान्य करनेके कारण कार्यको तथा उसके आराधनकी तपश्चर्या और भावनासे अनन्त लाभके फलका मतलबको समझे बिना उसका निषेध करने के लिये - मूलसूत्रादि पंचांगी के अनेक शास्त्रोंके (श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणको सम्बन्धी ) पाठोंके अर्थ बदलाकर अनेक तरहके उत्सूत्र भाषणों पूर्वक अनेक तरहकी कुयुक्तियों करते हुए उसकी पुष्टि करने के लिये वस्तु के बहाने श्रीआदिनाथजीके भी च्यवन जन्म दीक्षादि कल्याणकोंको निषेध कर दिये परन्तु उत्सूत्र भाषणके विपाकका भय न किया सो बड़ेही शोककी बात है कि न्यायांभोनिधिजीने विवेक बुद्धिसे विचार किये बिना ही अपनी अन्धपरंपराकी कल्पित बात जमानेका गच्छ कदाग्रह के भागड़े में पड़कर ऐसा अनर्थ करके निजपरके संसार वहिके
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